सहायता
दूसरों की सहायता करने की वृत्ति मनुष्य को पशुता के तल उपर उठाकर इन्सान बनने, मानव बनने की पहचान कराती है।
किसी के काम जो आये उसे इन्सान कहते हैं।
पराया दर्द अपनाये उसे इन्सान कहते हैं ।।
किन्तु आज समाज में इस दौड़-धूप भरी जिन्दगी में अपने स्वार्थ में इतने संलग्न हो जाते हैं कि जीवन चिन्ताओं और व्यर्थ की बातों में मग्न रहते हैं कि दूसरों की तरफ ध्यान ही नहीं जाता और सहायक होने की शक्तियां क्षीण होने लगती हैं। जैसे एक बहती नदी का बहना बन्द हो जाये तो उसमें मैलापन आ जाता है उसी तरह यदि हमारे भीतर की शक्ति स्वार्थ, अपना, मेरा और मैं पर केन्द्रित हो जाये तो जीवन व्यर्थ और नीरस हो जाता है।
दूसरों की भलाई के लिये निष्काम भाव से किया हुआ कार्य ही सहायता है। तन मन धन से दूसरों की सहायता करना, उनकी वेदना शोक संताप में और हर्ष में भी सहायक होना ही परोपकार है। हम इस बात से इन्कार नहीं कर सकते कि यह संसार हमारा यह समाज, एक दूसरे के सहयोग से ही चल रहा है। रामचरितमानस में तुलसीदास जी ने इसी बात का समर्थन किया कि ‘परहित’ से बढ़ कर कोई धर्म नहीं है।
यदि हम प्रकृति की ओर देखें तो नदियां अपना नीर स्वयं नहीं पीती, वृक्ष अपने फल आप नहीं खाते, बादल बरस कर हरे भरे खेत तो देते हैं | लेकिन उस धान्य का सेवन नहीं करते इससे शिक्षा लें कि मानव | जीवन भी सफल हो यदि वह दूसरों की सहायता करता है। कोई भी धर्म ऐसा नहीं जो दूसरों से सहयोग करने के लिये प्रेरित नहीं करता।
क्या मार सकेगी मौत उसे
औरों के लिये जो जीता है।
मिलता है जहां का प्यार उसे
जो औरों के आंसू पीता है।
इसी प्रसंग से सम्बन्धित यह घटना है कि एक महात्मा के पास युवक इस जिज्ञासा से पहुंचे कि हमें जीवन में बहुत बड़ा आदमी बनना है। महात्मा जी ने कहा कल सुबह पूजा विधि के पश्चात आज ग्यारह बजे तक पहुंच जाना तो मैं तुम दोनों को ही एक साथ बड़ा आदमी बनने का मूलमन्त्र समझा दूंगा।
प्रतिष्ठा
अगले दिन वह युवक आश्रम की ओर जाने के लिये घर से निकला तो थोड़ी दूर पर ही एक मजदूर को व्यथित देखा। ने मजदूर कहा तुम नौजवान हो मेरी सहायता करके यह गठरी मेरे सिर पर रखवा दो और मैं मालिक के यहां पहुंचा सकूं ताकि मेरे सारे दिन के श्रम से मिली मजदूरी मिल जायेगी।
युवक ने झुंझलाते हुए कहा- मेरे पास तो समय नहीं क्योंकि मुझे तो समाज में बहुत बड़ा आदमी बनना है। वह युवा कुछ दूर आगे गया तो एक व्यक्ति सड़क के बीच खड़ा सहायता के लिये हाथ दे रहा था कि मेरी गाड़ी गढ्ढे में कीचड़ में फंस गई है मैं अपने बीमार बच्चे के लिये दवाई लेने जा रहा हूं जरा गाड़ी कीचड़ में से निकालने में मेरी सहायता कर दो।
क्रोध में ऊंची आवाज में कहा इस समय में जब मैं बड़ा आदमी बनने जा रहा हूं अपने कपड़े कीचड़ से खराब कैसे कर सकता हूं। आगे चला तो एक बूढ़ी स्त्री गरमी से घबरा कर बोली कि न जाने मुझे चक्कर से आ रहे हैं पानी पिला दो। युवक ने और सहायता करके कहीं वृक्ष की छाया में बिठा दो। युवक ने झुंझला कर कहा मुझे भाग भाग कर समय पर पहुंचना है क्योंकि मुझे बड़ा आदमी बनने का मजा लेना है।
सभी की उपेक्षा करते हुए जब वह युवक महात्मा के पास पहुचा तो महात्मा जी ने कहा जब तक वह दूसरा युवक यहां नहीं पहुंचता तब तक तुम्हें प्रतीक्षा करनी होगी क्योंकि मैंने तुम दोनो को एक साथ मन्त्र देने का वचन दिया है। समय बीतता गया दूसरा युवक वहां बहुत बिलम्ब से पहुंचा और क्षमायाचना करते हुए महात्मा जी से कहने लगा कि मैं घर से तो बहुत
समय पहिले आया था कि मेरे देर से आने का कारण है कि पहिले तो एक मजदूर सहायता का पात्र था फिर एक व्यक्ति की गाड़ी दलदल में फसी थी और एक असहाय स्त्री को सहायता की आवश्यकता थी इसीलिये मुझे आने में विलम्ब हो गया है। महात्मा ने उसे आशीर्वाद देते हुए कहा कि इस समाज में और अपना मन शान्त और प्रसन्न रखने का बड़ा आदमी बनने का यही तो मन्त्र है जो व्यक्ति केवल स्वयं के लिये ही नहीं जीता।
मानसिक शक्ति
दूसरों को सहयोग दिये बिना जीवन को सार्थकता नहीं मिलती। यह सुन पहले युवक का चेहरा फीका पड़ गया। सहायता करने | वाले मनुष्य का मन सद्गुणों से परिपूर्ण होता है और ऐसे व्यक्ति मन ही मन आनन्दित रहते हैं।
मधुबन खुशबू देता है,
सागर सावन देता है ।
जीना उसका ही जीना है,
जो औरों को जीवन देता है।।
स्वाध्याय
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