मां दिवस
मां दिवस (Mother’s Day) इस शुभ अवसर पर सभी जननी मा के लिये मेरी शुभकामनाएं और प्यार भरा नमस्कार हिन्दू संस्कृति और संस्कारों में मां की तुलना उस सृजनहार भगवान के साथ की जाती है।
उस मां को दुनियां का वन्दन है
जननी है जो है जाया
जिसने जीवन पूर्ण बनाया देवतुल्य है अर्चन उसका
वह है प्रकाश की हर किरण ।
उस मां के ऋण से कौन उऋण है
है वह संस्कृति के शिर का वन्दन ।।
भक्ति के समय जैसे हम भगवान् को इष्ट मानकर उसकी अराधना और पूजा करते हैं उसी तरह मां भी देवी तुल्य है और पूजनीय है। वैदिक धर्म में कहा गया है।
मातृ सम अन्य देवो नास्ति आयु प्राण यश स्वर्ग कीर्ति श्रेय बल
सुख धन धान्य सर्वतः प्राप्ति मात् वन्दनात् ।
मां की सेवा से मनुष्य को न केवल दीर्घायु, या कीर्ति और सुख मिलता है। इसलिये हमारी भारतीय संस्कृति है कि ‘मातृ देवो भव’।
हे मां तेरी सूरत के सिवा
भगवान् की मूरत क्या होगी।
मां दया और क्षमता की प्रतीक है क्योंकि उसकी सन्तान कितनी भी गलतियां करे वह हमेशा उन्हें क्षमा करने की क्षमता रखती है। एक मां ही है जो अपने बच्चों की सफलता देखकर मन ही मन प्रसन्न और उत्साहित होती है।
जो लोग अपने माता पिता की सेवा नहीं करते ?
जैसे ईश्वर हमारे पालन की व्यवस्था प्रकृति आदि शक्तियों से करता है वैसे ही गर्भ से लेकर मां अपने संतान का पालन पोषण करती है। मां ही हमारी प्रथम गुरु भी है। जन्म से जैसे जैसे वह संस्कार और विचार हमें देती है वैसे-वैसे ही हमारा व्यक्तित्व बनता है। किसी कवि के शब्दों में
मुसीबतों से मुझे जिसने बचाया होगा।
वह मेरी मां की दुआओं का ही साया होगा ।।
मां और बच्चों का सम्बन्ध भावनात्मक है जो वात्सल्यभाव मां के हृदय में है उसकी तुलना नहीं की जा सकती। नारी के रुप में वह किसी की कन्या, पत्नी, बहिन के रूप में, सभी सम्बन्धों में स्नेह रखती है, किन्तु अपनी सन्तान के प्रति जो वात्सल्य और ममता है। उसे शब्दों में व्यक्त नही किया जा सकता।
इसी प्रसंग में एक लोककथा है कि एक धनी व्यापारी की इकलौती लाडली कन्या थी। पिता को निजी व्यापार के कारण विदेश जाना पड़ा। बेटी पिता के वियोग के कारण जब भी उदास होती तो मां उसके लिये मनोरंजन के साधन जुटाती रहती।
एक दिन भ्रमण करते करते पहाड़ी इलाकों में कहानियां सुनाते हुए बेटी का मन बहला रही थी तो देखा कि सामने एक गुफा है वह कौतूहल से अन्दर झांका तो उसके अन्दर सोना हीरे चमक रहे थे।
दान की महिमा – THE GLORY OF DONATION
फिर वह अन्दर गई और उसने एक मुट्ठी में सोना भरा और दूसरे हाथ से बेटी की अंगुली। अगले कुछ क्षणों में लालच की प्रवृत्ति में आकर बेटी का हाथ छोड़ दिया और दोनो मुट्ठियों में हीरे जवाहरात इक्कठे करने और संभालने लगी। जैसे ही वह बाहर आने लगी देखा कि गुफा का द्वार बन्द हो गया और वह बाहर और बेटी अन्दर ।
रक्षकों से चीखी चिल्लाई कि वह द्वार खोले। किन्तु रक्षकों ने बताया कि यह द्वार तो वर्ष में दो बार ही खुलता और बन्द होता है। वह नतमस्तक प्रार्थना करने लगी कि मुझे यह सब कुछ भी नहीं चाहिए। मेरे पास जो पहने हुए आभूषण हैं वह भी ले लो किन्तु मेरी कन्या को सुरक्षित मुझे लौटा दो। इस सरल और ज्वलन्त उदाहरण से स्पष्ट है कि अपने बच्चों के हित और सुरक्षा से बढ़कर मां को दुनिया की कोई भी वस्तु प्रिय नहीं हो सकती।
किसी कवि के शब्दों में दिल छू लेने वाले यह पंक्तियां है :-
छू रूह की गहराई के इस रिश्ते को तो देखिये।
चोट लगती है हमें और रोती है मां।
कब जरूरत हो मेरे बच्चों को ऐसा सोचकर ।
जागती रहती है आंखे चाहे सो जाती है मां ।
जब कभी परदेश में घिर आते हैं मुसीबत में हम,
आसुंओं को पोछने ख्वाबों में आ जाती है मां ।
शुक्रिया उसकी मोहब्बत का तो हो सकता नहीं ।
मरते मरते भी दुआ जीने की दे जाती है मां।
अतः मां दिवस मनाने का सही तात्पर्य यह है की अपने माता पिता को जीवन में कभी भी दुखी न करो, सुबह उठते ही हमेशा उनका चरण स्पर्श करो, हमेशा उनका कहना मानो, उनके चेहरे पर प्रसन्नता हमेशा छलकता रहे, उन्हें अपने पुत्र पुत्रियों पर हमेशा गर्व हो, असल में मां दिवस तो हमें रोज ही मनाना चाहिए क्योंकि अगर माँ अपने बच्चों से खुश है तो ही मां दिवस मनाने का सही तात्पर्य बैठता है।
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