आओ वसन्त मनाएं
इतनी घोर शरद् ऋतु यानी सर्दी और बर्फ के पश्चात् वसन्त ऋतु का रहा जिसकी हम सब प्रतीक्षा उत्सुकता कर रहे हैं। इन उत्सवों व पर्वों से ही हमारी संस्कृति की रक्षा होती है। हमारा भारत इन पर्वों और त्यौहारों का देश है। यह सब बदलती हुई ऋतुएं और त्यौहार हमें विशेष सन्देश देते हैं। इन उत्सवों पर सम्बन्धियों, मित्रों से मिलजुल कर हर्षित होने और आनन्द उठाने की प्रथा भी है।
यदि दीपावली का त्यौहार हमें अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जाने का संकेत करता है तो नवरात्रि नवशक्ति ऊर्जा और जीवनी शक्ति प्रदान कराती है। लोहड़ी उल्लास और आनन्द से मिलजुल कर खुशी मनाने की ओर संकेत करती है किन्तु इस मार्च के मास में हिन्दू कैलेण्डर के अनुसार शुक्ल पक्ष में आने वाली वसंत पंचमी प्रकृति प्रेम और सरस्वती पूजन द्वारा शुद्ध बुद्धि की ओर प्रेरित करती है।
प्रकृति से पत्तों को हरा होता देख, फूलों को खिलते देख, हृदय में हर्ष और उमंग उठती है क्योंकि शरद् ऋतु के कारण धरती की जड़ता समाप्त हो जाती है। आप देखते हैं कि वसन्त ऋतु में प्रकृति अपने श्रेष्ठ रूप में होती है। वसंत पंचमी के यह दिन ज्ञान की प्रतीक, सरस्वती मां का दिन इस ओर ध्यान करवाती है कि शुद्ध बुद्धि द्वारा ही जीवन में खिलखिलाहट उत्पन्न की जा सकती है।
माँ सरस्वती बुद्धि की, ज्ञान की देवी मानी गई है। विवेक पूर्ण बुद्धि से ही हमारा जीवन संवरता है। सरस्वती देवी की चार भुजाएं हैं। एक हाथ पुस्तक ज्ञान का प्रतीक है। दो हाथों में धारण वीणा में लय और संगीत की ध्वनि की ओर संकेत करता है एक हाथ में कमल का फूल इस संसार में जीने का मार्ग दिखाता है कि इन संसारिक विषयों के कीचड़ में रहकर भी इन्सान कमल के फूल की तरह खिलता रहे।
शरीर और आत्मा
सरस्वती के श्वेत वस्त्र भी चरित्र की उज्जवलता की ओर प्रेरित करते हैं।
पंचमी में पीला रंग त्याग और निर्मलता का प्रतीक है हमें अपने से विश्वास और शुद्ध मन से यहीं प्रण करना है कि यह रंग हमारे जीवन में खो न जाये । सात्त्विक पर्वों की मूल भावना को बचाये रक्खें सदभाव से हम इस त्यौहार का महत्त्व समझें और उसे जीवन में उतारने का प्रयास करें।
मेरे दर्शकों से मेरी आज यही प्रार्थना है कि उल्लास से उमंग से वसन्त से वसन्त पंचमी का त्यौहार मनायें अपने भीतर ज्ञान अर्जन कर जीवन में सद्बुद्धि का प्रयोग करें और देवी सरस्वती की वीणा की मधुर ध्वनी की तानों से अपने जीवन मे भीं वसन्त ले आयें और यह संकल्प करें
सहनाववतु सन्हनौ मुनक्तु, सहवीर्यम् करवावहै ।
तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै ।।
अन्त में दर्शकों को यह कहना चाहूंगा कि
ऋतुएं आती जाती हैं किन्तु,
फूलों को तुम हंसता देखो।
कांटों से भी उनका रिश्ता देखो।
झरनों का गिर गिर, खिलखिलाना।
लहरों का गिरना और उठ जाना देखो।
धीर धरो धरती की तरह ।
सिंच जाओं माटी की तरह ।।
आओ वसन्त मनाएं क्योंकि इसी दिन सभी माँ सरस्वती से निर्विघ्न प्रार्थना करते हैं की हमें अन्धकार से प्रकाश की ओर, असत्य से सत्य की ओर, अज्ञान से ज्ञान की ओर, बुराइयों से अच्छाइयों की ओर मृत्यु से अमृत की ओर जाने के लिए प्रेरित करें कहा भी जाता है :-
असतो माँ सदगमय
तमसो माँ ज्योतिर्गमय
मृत्योर्मा अमृतंगमय
विज्ञान और धर्म
आओ वसन्त मनाएं सभी मिलकर जीवन की सभी बुराइयों को दूर हटायें विद्या का अर्जन सात्विक भाव से करें, स्वाध्याय में कभी आलस्य, प्रमाद, गपशप आदी न करें, स्वाध्याय करते समय माँ सरस्वती का ध्यान करें क्योंकि वेदों में भी कहा गया है की स्वाध्यायान मा प्रमदः अर्थात स्वाध्याय करते समय कभी आलस्य, प्रमाद, मत करो इन सभी बुराइयों से बचो ।
स्वाध्याय करते समय अगर हम आलस्य, प्रमाद, गपशप आदि करते हैं तो इससे विद्या का अपमान होता है और विद्या का अर्थ है सरस्वती यानी विद्या की देवी है सरस्वती जिसका हमें अपमान कभी भी नही करना चाहिए आइये इन सभी बुराइयों ओर व्यसनों से बचते हुए हम सभी वसंत मनाएं ।
हमारा जीवन सत्य पर आधारित हो