सेवाभाव
सेवा एक साज है जीवन के गीत का
इन्सान से इन्सान की अनूठी प्रीत का
हमारी भारतीय संस्कृति में दया, दान और सेवाभाव की प्रधानता, हमेशा से मनुष्य के मन में रही है। सेवा एक ऐसा माध्यम है जिससे मनुष्य अपने जीवन की शक्ति और समय का उचित रूप से प्रयोग कर सकता है इसलिये स्वार्थरहित सेवा को प्रार्थना का एक महत्त्वपूर्ण अंग माना गया है।
एक बार महात्मा गांधी जी से किसी जिज्ञासु ने यह प्रश्न किया कि जीवन में सबसे कठिन काम क्या है ? गांधी जी ने उत्तर में कहा- एक मनुष्य के लिये मनन, चिन्तन कर पुस्तक लिखना आसान है, परिश्रम कर भाषण देना भी सरल है। जेल की यातना भी सहनशीलता से स्वीकार करने पर सरल हो जाती है किन्तु जीवन में नि:स्वार्थ भाव से सेवा करना तथा दूसरों के लिए सेवाभाव अपनाना सबसे कठिन कार्य है।
कृतज्ञता
सामाजिक व्यवहार में ही आप देखिये कि एक सेवक यदि सेवा करते हुए चुप रहता है तो लोग उसे गूंगा, गंवार कहने लगते हैं। यदि वह बोलता है तो उसे बकवादी और दिखावेपन वाला कह देते हैं। यदि वह समीप यानी पास आने लगे तो उसे ढीठ और ढोंगी कहते हैं,
यदि वह खरी खोटी सब की सह लेता है तो उसे डरपोक कहते हैं और यदि पलट कर जवाब देता है तो उसे अहंकारी और दम्भ माना जाता है इसलिए तो संत तुलसीदास का यह कथन कितना सत्य है
‘सेवा धर्म कठिन जग जाना’
इस प्रसंग में एक रोचक लोक कथा प्रसिद्ध है :-
एक बुद्धिमान नौजवान अपनी मां से बहुत लाड़-प्यार करता था। एक दिन अपनी मां से कहने लगा कि तूने इतने त्याग से मुझे इस योग्य बनाया है कि मुझ पर तेरे अनन्त उपकार है इसलिए मुझे अपनी सेवा का अवसर दो। आज जो कहोगी मैं वहीं करूंगा।
नौजवान का इतना प्यार और जिद्द देखकर मां का दिल पिघल गया और उसने कहा कि, बेटा आज मैं अस्वस्थ हूँ मेरा दिल घबरा रहा है केवल आज की रात तुम मेरे पास रहकर मेरी सेवा कर लो। नौजवान ने कहा कि यह क्या कठिन है? मां के साथ अपनी खटिया बिछाई और साथ रहने का निश्चय कर लिया। रात को मां को खांसी आई उसने कहा बेटा एक गिलास पानी दे दो।
कुछ क्षण के बाद खांसी और बिगड़ी तो मां ने कहा यह खांसी तो मुझे सांस नहीं लेने दे रही और प्यास भी लगी है। नौजवान झुझला गया और तीव्र स्वर से बोला कि पानी का गिलास तुम्हारे पास तो रखा है उठा लो। कुछ देर बाद मां ने कहा बेटा आधी रात हो रही है मुझे नींद नहीं आ रही गला सूख रहा है।
प्रेम की परिभाषा
झल्लाकर वह युवक बोला क्या रात भर पानी पानी की रट लगा रखी है, नींद नहीं आ रही तो मुझे परेशान क्यों कर रही हो। इतना सुनते ही मां ने मधुर स्वर में बताया कि में तो तुम्हारे सेवाभाव की परीक्षा ले रही थी। उदाहरण से स्पष्ट है कि हाथ से श्रम और हृदय में सेवा का भाव हो तभी सच्ची सेवा कर सकता है।
कुछ लोग दिखावे के लिये, प्रशंसा पाने के लिये, कुछ अपना समय बिताने के लिये और बहुत से लोग तो बदले में कुछ पाने की तमन्ना से सेवा करते हैं, कुछ लोग अपने दुःखों के निवारण और मानसिक संतुलन के लिये सेवा का भाव मन में लाते हैं किन्तु सच्ची सेवा का जन्म शुभ भावनाओं और हृदय से होता है।
यदि गम्भीरता से विचार करें तो दूसरों की नि:स्वार्थ सेवा वाला व्यक्ति अपनी भी सेवा कर रहा है। सेवा धर्म से जितना दूसरों का भला होता है ईश्वर उससे दुगना आपका हित करता है। संकुचित हृदय वाले और संकीर्ण विचारों वाले न तो अपने धन का उपभोग करते हैं और न तो आप आनन्द उठाते हैं और न दूसरों की सेवा कर प्रसन्न होते हैं। इस गूढ़ रहस्य को रहीम जी ने दो ही शब्दों में व्यक्त कर दिया है :-
देने वाला कोई और है, जो देता दिन रैन
लोग भरम हम पे करै, या विधि नीचे नैन
अतः दूसरों की सेवा करने वाला व्यक्ति ,दूसरों के लिए मन में सेवाभाव रखने वाला व्यक्ति जीवन में कभी दुखी नहीं रहता । इसलिए मेरा आप सभी से निवेदन है की दूसरों के लिए मन में सेवाभाव रखने का प्रयास कभी मत छोड़ना।
विनम्र बनो
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