पिता का स्वरूप

 पिता का स्वरूप

आज हम बात करने वाले हैं पिता का स्वरूप के बारे में, कहा जाता है कि :-

पिता वह सर्वस्व है जो मां नहीं है

मां दुलार है तो पिता व्यवहार है

मां ज़मीं है तो पिता आसमां है

हर पिता अपनी सन्तान से आसमां की उचाईयां छून्ने की आशा रखता है। ‘पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा’

परिवार एक सुन्दर, रंगीन, रेशम की डोर है इसका हर इक धागा एक दूसरे को शक्ति देता है और आपसी प्रेम करता है। परिवार को जन्म देने वाला पिता अपने खून पसीने से अपनी बगिया को सींचता है। भारतीय संस्कृति में आप यह झलक देखते हैं कि चाहे संतान स्वावलम्बी में हो, पिता पर निर्भर न हो, तो भी उसकी भावना यही होती है।

न माया चाहिये न काया चाहिये।

हमें तो बस आपका साया चाहिये।।

पिता केवल जन्मदाता ही नहीं वह संस्कारदाता और जीवन निर्माता भी है। समाज में ये पांच व्यक्ति हमेशा ही पिता तुल्य होते हैं :

(1) जन्म देने वाला |

(2) यज्ञोपवीत संस्कार करने वाला ।

(3) विद्या देने वाला ।

(4) भय से बचाने वाला ।

(5) अन्न आदि देकर पालन पोषण करने वाला ।

सन्तान और जल में कोई अन्तर नहीं, जैसे जल जिस किसी बर्त्तन में डालो उसका वही आकार होगा उसी तरह संतान पर पिता के व्यवहार का बहुत गहरा प्रभाव होता है। जो संतान अपने जीवन निर्माता की आज्ञा का पालन करता है, उनका सत्कार सम्मान करता है, सेवा करता है, उसका जीवन सार्थक और सुदृढ़ हो जाता है।

एकाग्रता

किन्तु आज के समाज में विडम्बना तो इस बात की दिखाई दे रही है कि जिस बालक को पिता, बोलना, चलना और जीवन जीने के ढंग सिखाता है, आज वही नवयुवक अपने पिता को मौन रहने की भाषा सिखा रहा है। यह सत्य घटना से प्रमाणित कर रहा हूं प्रत्येक वर्ष जब भी बालक का जन्मदिवस होता है तो माता-पिता उत्साहित होकर पूजा और पार्टी की व्यवसथा करते हैं।

 पिता का स्वरूप
पिता का स्वरूप

नन्हें बालक ने अचम्भे से पूछा पिताजी यह हमारे घर में क्या हो रहा है? इतना हंगामा? पिता ने कहा आज तुम्हारा जन्मदिन है इसलिये यह घर में सारी सजावट और व्यवस्था हो रही है। समय के प्रवाह के साथ बालक जवान हुआ, परिवार वाला हुआ और पिता बहुत वृद्ध हो गया। घर में खूब शोर था लोग आजा रहे थे । वृद्ध पिता ने साहस बटोरते हुए पूछा बेटा आज घर में इतना कैसा शोर है?

क्रोध में ऊंची आवाज़ में बेटे ने कहा ‘जो भी हो रहा है क्या आपको दिखाई नहीं दे रहा ?, व्यर्थ के प्रश्न पूछ कर मेरा समय बरबार न करो।’ पिता को समझ आई कि यह जिन्दगी विविध अवस्थाओं के गुज़रने के बाद विपरीत हो जाती हैं। विचारों में मतभेद हो जाता है। स्वभाविक है कि पिता स्वभाव से विवश अपनी सलाह देना नहीं छोड़ते।

महाभारत में पिता का स्वरूप को दर्शाते हुए यक्ष ने महाराज युधिस्ठिर से प्रश्न किया की बताओ आकाश से भी ऊँचा कौन है ? इस प्रश्न का उत्तर देते हुए युधिस्ठिर जी ने कहा पिता आकाश से भी ऊँचा है यह है पिता का स्वरूप 

अगर संतान स्मृति के दर्पण में अपने बचपन और युवावस्था की ओर देखे तो पिता के उपकारों की अनगिनत झलकियां उभर आयेंगी। प्रत्येक माता-पिता संतान का हित चाहते हुए प्रगति, प्रतिष्ठा और शानदान सफलता चाहते हैं। यदि माता शुभ संस्कारों के बीज बोती है तो पिता उन अंकुरित बीज की रक्षा और पालन करता है। संतान की उन्नति के लिये पिता अनगिनत कष्टों को सहर्ष झेल लेता है।

शरणगति

पिता का स्वरूप अथवा पिता का कर्त्तव्य यह भी है कि वह एक Role model बनकर निष्ठा से संतान में ऐसे गुण उत्पन्न करे अपने जीवन को आदर्श रूप से जिये ताकि संतान धर्म के अनुसार चलते हुए आत्मविश्वासी, अनुभवी और यशस्वी बने। ताकि घर- घर में श्रवणकुमार जैसे सेवक पुत्र और गुणों से भरपूर पुत्रियां हो। अन्त में मैं बस इतना ही कहना चाहूँगा कि :-

स्नेह का स्निग्ध दरिया है ये पिताजन

जीवन का आधार है यह

बदल दे जिन्दगी की रवानी को

यह ऐसा तेज हवा का झौंका है यह पिताजन

 

(HAPPY FATHER’S DAY)

दयालुता

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