शुभ विचार

शुभ विचार

इस दुनिया में तीन प्रकार के लोग ही होते हैं :-

  1. पहले वो जो कुछ भी विचार नहीं करते
  2. दुसरे वो जो सिर्फ विचार ही करते हैं और
  3. और तीसरे वो जो सिर्फ अच्छे और शुभ विचार ही करते हैं

बिना विचारे जो करे सो पाछे पछताय ।

काम बिगाड़े आपनो जग में होत हसाय ||

जग में होत हसाय तो मन में चैन कहां से पाय ?

जिस व्यक्ति में उचित अनुचित विचार करने की शक्ति नहीं वह मानव इस दुर्लभ जीवन को व्यर्थ ही गवां देता है। हमारे भीतर जैसे जैसे विचार होते हैं उनके अनुरूप ही मनुष्य बाध्य होकर कर्म भी करता है। शुभ विचारों से मनुष्य में नवशक्ति का निर्माण होता है। जिससे उसका जीवन और भविष्य उज्जवल हो जाते हैं। जो भी मनोकामनाएं हमारे आन्तरिक मन में गुप्त रूप से रमण करती रहती हैं। वह ईश्वर के ध्यान से निश्चय ही पूर्ण होती है।

मां दिवस

स्वामी विवेकानन्द जी का कथन है कि जैसा आप सोचोगे वैसे ही बन जाओगे ! यदि स्वयं को निर्बल मानों तो निर्बल हो जाओगे यदि अपने विचारों में शक्ति का स्मरण करोगे तो सबल और शक्तिशाली बन सकते हो।

शुभ विचार

सुमति से सुविचार, सुविचार से सुकर्म

सुकर्म से सुख, कुमति से कुविचार

कुविचार से कुकर्म, कुकर्म से दुःख ही दुःख

शुभ विचारों से मनुष्य को लाभ और हानिकारक विचारों से निराशा, हानि और ग्लानि होती है। अब मन में प्रश्न यह उठता है कि यदि इन्सान को शुभ विचार सोचने का ढंग मालूम हो जाये तो यह समस्याओं और झंझटो से परिपूर्ण संसार सुख का भण्डार दिखाई देने लगेगा।

यह चिन्ताएं, भय, क्लेश सभी मनोविकार मिट जायेंगे। अदृश्य होते हुए भी यह विचार जीवन में कितने महत्त्वपूर्ण है। इन विचारों के अनुसार ही मानव अपने सभी कार्य करता है। जितने लोग भी साधारण स्थिति से ऊंचे उठे हैं और जिन्होंने भी कुछ नाम कमाया है उन सभी ने उन्नतिशील, सदविचारों की मुख्यता को सामने रखकर कार्यों को सम्पन्न किया है।

मनुष्य के संकल्प में विचारों की सत्यता का होना अनिवायै है। व्यर्थ की बातों में उलझ, शेखचिल्ली जैसी बड़ी बड़ी बातें करना और कल्पनाओं में डूब कर कभी उन्नति नहीं हो सकती, केवल शुद्ध विचार मन में रखने से ही कार्य पूर्ण नहीं होते उसके लिये दृढ़ श्रद्धा की भी आवश्यकता होती है।

आज के मनोवैज्ञानिक भी इस बात को सिद्ध कर रहे हैं कि रोगियों के मन पर शुभ विचारों का इतना प्रभाव होता है कि वह किसी सीमा तक स्वस्थ हो सकते हैं। मानसिक दृष्टि से निर्बल रोगियों को यदि साहस, पौरूष, वीरता और आनन्द, प्रसन्नता के विचार बार बार सुनाये जायें तो उनका मन कमजोरी, और दुर्बलता जैसी नकारात्मकता से हटकर आनन्दित हो जाता है।

कठिनाईयां

यदि सामाजिक रूप से देखा जाये तो इनका महत्त्व इस रूप में है कि अच्छे विचारों वाले प्रसन्नचित्त व्यक्ति से सभी मेल मिलाप रखना चाहते हैं। इसके विपरीत ऐसे लोग जिनका मुंह ईर्ष्या, द्वेष, कपट या चिन्तित होता है, उनके आस पास भी दुःखमय और विषैला वातावरण बना रहता है। ऐसे व्यक्ति अपने अन्दर नहीं झांकते और न ही अपने विचारों में दिव्यशक्ति को विकसित करते हैं।

अपने उच्चतम आदर्शों को उन्नतिशील विचारों के अनुसार यदि हम जीवन यापन करे तो जीवन सुखी हो जायेगा।

साधन रहित पुरुष के मन में, सत्बुद्धि सतभाव न आये ।

भ्रष्ट भावना हो जाये जब, सुख शान्ति नर कहां से पाये।।

यदि किसी कारणवश आप असफल भी है तो प्रकृति पर, भाग्य पर या परिस्थितियों को दोष न देकर, अपने ऊपर विश्वास और उत्साह, निरन्तर बनाये रक्खे। अपने मन में शुभ विचार रखकर उन्नतिशील जीवन की ओर अग्रसर हो सकते हैं।

यों मन के विचार अपने काबू में लाओ तो जाने

प्रभु भक्ति इनको सिखाओ तो जाने।

लगा विषयों का दिल में है डेरा

किन्तु यह दिल साफ मन्दिर बनाओ तो जानें।।

सहनशीलता

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