शरीर और आत्मा

शरीर और आत्मा

आज हम बात करने वाले हैं शरीर और आत्मा के बारे में, इस संसार में मुफ्त उड़ान भरता हुआ एक पंछी भी उड़ने में असमर्थ हो जाता है जब उसके पंख धूल मिट्टी से लिपट जाते हैं उसी प्रकार इस शरीर के रहते हुए मानव मन में यह अज्ञानता है कि यदि मैं संसार में अधिक से अधिक वस्तुओं को प्राप्त कर लूं तो मैं पूर्ण रूप से सुखी हो सकता हूं। संत कबीर जी ने यही प्रश्न तो प्राणीजन से किया है :-

दस द्वारों का पिंजरा तामें पंछी कौन ?

रहिबे को अचरज है जाय अचम्भा कौन ?

शरीर और आत्मा के सम्बन्ध को न जानते हुए व्यक्ति, न तो पुरुषार्थ कर योजना बनाता है और न ही जीवनकाल में ईश्वर की उपासना कर, उसमें प्रीति लगा कर, उसे प्राप्त करने के लिये प्रयास करता है। उसे ऐसा अनुभव होता है कि इस संसार में रहने के लिये मैं अच्छे से अच्छे घर में रहूं, पति या पत्नी बच्चों के साथ बहुत सा धन अर्जन करूं, खाता, पीता, घूमता, संसार के सुख लेता हुआ

मैं पूर्णरूपेण सुखी हो जाऊंगा, परन्तु शाश्वत सत्य तो यह है कि कोई भी शरीरधारी ऐसा नहीं है जो पूर्णरूप से सभी दुःखों से वंचित रह सकता है। यह तो प्राकृतिक बन्धन है कि जब तक यह शरीर है। उसे खाना पड़ता है, शरीर के कारण वस्त्र भी धारण करने पड़ते हैं, सोना भी पड़ता है। शरीर कभी बीमार और व्याधिग्रस्त भी होता है इसी के कारण सभी क्रिया कलाप करने पड़ते हैं।

नैतिकता

हम जाने ये खायेंगे बहुत जमीं बहु माल ।

ज्यों का त्यों ही रह गया पकरि ले गया काल ।।

किन्तु जैसे ही मनुष्य को इस नाश्वान शरीर का आभास होता है और आत्मा का ज्ञान होता है तो व्यक्ति इस भौतिक संसार के सारे अज्ञान को दूर कर सकता है। उस प्रभु की उपासना कर, भक्ति कर, उसके आदेश का अवलम्बन लेकर विशाल जीवन व्यतित कर सकता है।

यदि इन्सान के विचार संकीर्ण हो तो वह साधारण से शरीर की अनुकूलता में प्रसन्नता, सुन्दर होने में गर्व और प्रतिकूलता में नाराजगी प्रकट करने लगता है। जिसका हृदय संकीर्ण है वह ईश्वर की बन्दगी कैसे कर सकता है? शरीर की महिमा बहुत है इस बात से हम भ्रमित नहीं हो सकते क्योंकि केवल इसी के द्वारा जीव परमात्मा की उपासना करके जीवन भरण रूपी बन्धन से मुक्त हो सकता है।

‘जन्म मरण दु:ख याद कर, कूड़े काम विस्तार ।

जिन पंथा ते जावणा, सोई पन्थ सवार ||

एक व्यक्ति का बालक अचानक नदी में गिर गया उसी क्षण एक दयालु सज्जन ने नदी की गहराई में उतरकर उसे बचाया और सुरक्षित रूप से उस व्यक्ति को सौंप दिया। उस सज्जन न ऊपरी ऊपरी भाव से धन्यवाद का शब्द तो कह दिया किन्तु मन में न कृतज्ञता थी और न ही चेहरे पर उदासी।

आतंरिक शांति

दयालु सज्जन को कुछ शंका सी हुई और वह पूछ ही बैठा- यह क्या आपका ही बेटा है न? इसे पाकर भी आप उदास और गम में क्यों डूबे हुए हैं? उत्तर में छोटे विचारों वाले व्यक्ति ने कहा बेटा तो मेरा है किन्तु जब यह घर से चला था तो बहुत कीमती जूते पहन रखे थे पर इसके नंगे पैरों पर मेरा ध्यान जा रहा है।

यही अवस्था है कि मनुष्य की वह कीमती वस्तुओं के आकर्षण में इस नश्वर शरीर की चिन्ताओं और दुविधाओं में पड़ कर जीवात्मा के यथार्थ स्वरूप को भूला हुआ है। भगवान् की उपासना, आत्मा का अनश्वरता को पहचानना, एक ऐसा साधन है जो उसे बन्धनों से सांसारिक दुःखों से मुक्ति दिला सकता है।

शरीर और आत्मा
शरीर और आत्मा

शरीर और आत्मा को समझना जितना आसान दिखता है यानी दिखाई देता है असल में उसे समझना उतना ही मुश्किल  अवं कठिन है :-

जीवन का मकसद क्या है? क्या नहीं।

आज तक इन्सान समझ पाया नहीं ।।

आत्मा अमर है यह शरीर तो है नश्वर ।

इसे कहां जाना है इसे मालूम नहीं । ।

आत्मा के बारे में तो कृष्ण जी भी गीता में कहते हैं की :-

न ही इसे कोई जला सकता है

न गला सकता है

न बुझा सकता है

न सुखा सकता है 

यह कोई और नहीं

यह तो आत्मा ही है 

स्वाध्याय

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