वेदों में प्रमाण की वेद ईश्वरीय ज्ञान क्यों है ? अथवा वेदों के ईश्वरीय ज्ञान होने के वेद में प्रमाण :-
अनेक वेद मंत्रों में वेद के ईश्वरीय ज्ञान होने का स्पष्ट उल्लेख है।
उदाहरण के लिए कुछ मंत्र नीचे दिए गए हैं-
(i) अहं ब्रह्म कृणवम्- ऋ. १०/५६/१
अर्थात् मैंने ही ब्रह्मज्ञान दिया है।
(ii) तस्मात् यज्ञात्सर्वहुत ऋचः सामानि जज्ञिरे।
छन्दांसि जज्ञिरे तस्माद्यजुस्तस्मादजायत । ऋ. १०/६०/६
हे मनुष्यो ! आप लोग जिस परमेश्वर से ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद उत्पन्न हुए हैं, उसकी उपासना करो, वेदों को पढ़ो और उनकी आज्ञा के अनुसार आचरण कर सुखी होओ।
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(iii) स्वयंभूर्याथातथ्यतोऽर्थान् व्यदधाच्छाश्वतीभ्यः समाभ्यः । (यजुर्वेद)
स्वयं परमेश्वर ने सनातन- उचित ज्ञान सबके लिए दिया।
(iv) काव्येन सत्यं जातेनास्मि जातवेदाः । – अथर्ववेद ५/११/३
मैंने ही ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद आदि सत्य काव्य बनाए हैं ।
(v) यथेमां वाचं कल्याणीमावदानी जनेभ्यः ।
ब्रह्म राजन्याभ्यां शूद्राय चार्याच च स्वाय चारणाय ॥ यजु. २६/२
भावार्थ- प्रभु कहता है “मैं इस कल्याणी चारों वेदों की वाणी का सब मनुष्यों अर्थात् ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, सेवक, स्त्री आदि सबके लिए उपदेश करता हूं, वैसे तुम भी किया करो।” ‘वेद’ समस्त सत्य विद्याओं के मूल (स्रोत)
- योग व मुक्ति विद्या
- धनुर्विद्या
- सृष्टि विद्या
- ब्रह्म विद्या
- भूगोल व खगोल विद्या
- शिल्प विद्या
- विमान विद्या
- वाणिज्य व कृषि विद्या
- तार विद्या
- ज्योतिष विद्या
- भौतिक विज्ञान
- रसायन शास्त्र
- वनस्पति शास्त्र
- स्वर विद्या
- लिपि
- मनोविज्ञान
- आचार-नीति शास्त्र
- व्याकरण
- राजनीति
- कपड़ा बुनने की विद्या
- कला
- बढ़ई गिरी
- साहित्य
- लौहार के काम की विद्या
- वास्तु शास्त्र
- समुद्री जहाज चलाने की विद्या
- यज्ञ विद्या
- गणित, बीज गणित, रेखा
- गणित आदि
वेदों में क्या है ?
वेद – ईश्वरीय ज्ञान क्यों ?
वेद ईश्वरीय ज्ञान क्यों है ? – इस विषय पर कई प्रमाण मिलते हैं विद्वानों का मानना यह है कि ईश्वरीय ज्ञान वही हो सकता है, जिसमें निम्न लक्षण पाए जाएं:-
१. जो ज्ञान-सृष्टि की मानव-रचना के प्रारम्भ में दिया गया हो, ताकि जिसमें मनुष्य अपने कर्तव्य-अकर्तव्यों को जान सकें।
२. जो सृष्टि-विज्ञान के प्राकृतिक नियमों के अनुकूल हो ।
३. जो तर्कसंगत तथा विवेकपूर्ण हो। जिसमें कोई विरोधाभास (परस्पर विरोधी विचार) न हो
४. जो सत्य, सनातन एवं सम्पूर्ण हो ।
५. जो सार्वकालिक, सार्वदेशिक, व्यावहारिक एवं प्राणिमात्र के लिए एक समान उपयोगी हो ।
६. जो मानव मात्र के लिए कल्याणकारी, शान्तिदायक एवं प्रेरणादायक हो ।
७. जो जाति-पांति, भाषा-बोली, नस्ल, स्थान-देश, घृणा-विद्वेष, ऊंच-नीच, आर्थिक व सामाजिक वर्ग भेद की सीमाओं एवं त्रुटियों से सर्वथा
मुक्त हो।
८. जो जीवन के सर्वोमुखी विकास का मार्ग प्रशस्त करें।
६. जो जन्म-मरण के बन्धन से मुक्ति दिलाकर मोक्ष अवस्था तक पहुंचा सके।
१०. जो मानव जाति के एतिहासिक वर्णनों से मुक्त हो ।
११. जो ज्ञान मनुष्य प्रदत्त न हो। अर्थात् जो विद्वान् समूह द्वारा रचित ग्रन्थ के रूप में न हो । अर्थात् जो मनुष्य की कृति न हो क्योंकि मानव-कृति सर्वथा निर्भ्रान्त एवं निर्दोष कदापि नहीं हो सकती, क्योंकि मनुष्य सर्वज्ञ नहीं अल्पज्ञ है, सर्वव्यापक नहीं-एकदेशी है।
उपर्युक्त सभी लक्षण ‘वेदों’ में मौजूद हैं। इसलिए वेद ही ईश्वरीय ज्ञान हैं। सन् १८८३ में शिकागो में आयोजित ‘विश्व धर्म सम्मेलन‘ में, विश्वधर्म (Universal Religion) अथवा वैज्ञानिक धर्म (Scientific Religion) की चार कसौटियाँ, वहां पर उपस्थित विश्व भर से आए धर्माचार्यों, दार्शनिकों तथा वैज्ञानिकों की एक समिति ने गम्भीर मंथन करने के पश्चात् तय की थीं।
वे मुख्यतः चार थीं :-
१. समता (Equality)
२. विश्व भ्रातृभाव (Universal Broth- erhood)
३. सर्वांगीण विकास (Harmonious Development) तथा
४. वैज्ञानिक आधार (Scientific Base)
ब्रह्मचर्य क्या है ?
उपरोक्त चारों कसौटियों पर भी केवल वैदिक धर्म ही पूरी तरह खरा उतरता है। वेद में समता, विश्वभ्रातृत्व तथा सर्वांगीण विकास के लिए सहस्रों मंत्र उलब्ध हैं। वैदिक धर्म का वैज्ञानिक आधार तो इसी बात से सुस्पष्ट है कि वेद का ज्ञान आधुनिक विज्ञान के समस्त नियमों-खोजों के अनुकूल है।
इस संदर्भ में डब्ल्यू डी. ब्राउन का कथन पढ़िए, जिसमें वह वैदिक धर्म के बारे में लिखता है-“It is thor oughly scientific religion where religion and science meet hand in hand.” अर्थात् “वैदिक धर्म सम्पूर्णतया वैज्ञानिक धर्म है, धर्म और विज्ञान हाथ मिलाकर चलते हैं।”
वेदों में क्या है ?