वाणी का महत्त्व
आज हम बात करने वाले हैं वाणी का महत्त्व के बारे में, इसी भाव को बहुत ही सुन्दर और सरल शब्दों में रामचरितमानस में तुलसीदास जी ने कितने सरल और सुन्दर शब्दों में प्राणी मात्र को सन्देश दिया है :-
तुलसी मीठे वचन से, सुख उपजत चहूं ओर ।
वशीकरण यह मन्त्र है, तज दे वचन कठोर ॥
अपने मन को प्रसन्न रखने, अपने चित्त को शान्त रखने और अपने आसपास का वातावरण सुन्दर बनाने के लिये हम मधुरवाणी यानी मीठी बातें सुनने के लिये उत्सुक रहते हैं आज इसी एक शब्द वाणी पर कुछ विचार प्रस्तुत कर रहा हूं।
शुभ विचार
इस सांसारिक जीवन में वाणी बहुत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसके द्वारा ही हम आपसी बात चीत, विचारों का आदान प्रदान करते हैं। आप सब मेरी इस बात से सहमत होंगे कि दो प्यार भरे बोल को समीप ले आते हैं किन्तु द्वेष, द्वन्द, लड़ाई-झगड़ा, मानसिक अशान्ति, इन सब का मूल कारण मुख से निकले हुए कटुवचन ही तो हैं। संत कबीरदास जी ने भी इस बात की पुष्टि की है :-
वाणी तो अनमोल है, जो कोई जाने बोल । हिये तराजू तोल के, तब मुख बाहिर खोल ।।
हमने वाणी का महत्त्व तो जाना किन्तु इन्हें व्यवहार में कैसे लाया जाये ? सबसे पहले हमें यह सोचना है कि हम हमेशा सत्य वचन बोलें – जन्म लेते ही, जब बालक बोलने लगता है तो मां उसे सरल भाव से सिखाती है – कि झूठ नहीं बोलना क्योंकि यह इन्सान की सबसे बड़ी कमजोरी है। कृष्ण लीला में मैय्या यशोदा भी श्रीकृष्ण से प्रश्न करती हैं कि क्या तुमने माखन चुराया ?
क्या तुमने मटकी तोड़ी ? मुझे सच सच बतलाओ व्यावहारिक जीवन में ऐसे बहुत से समय आते हैं इस विषय पर बहुत तर्क वितर्क भी हुए हैं कि कभी दूसरों की भावनाओं को ध्यान में रखकर या अपनी बात मनवाने और सिद्ध करने के लिये झूठ का आश्रय लेना पड़ता है। किन्तु सत्यभाषी के मन में गम्भीरता आती है और गम्भीरता आने से व्यक्ति सोच समझ कर शब्दों का प्रयोग करता है।
संयमी होकर मितभाषी कम बोलने वाल भी हो जाता है। उपनिषद् कहती है ‘मन: सत्येन शुध्यति’ सत्य बोलने से मन शुद्ध और प्रसन्न रहता है। किसी कवि के शब्दों में
सत्यवादी वह है जिसका वचन, मन, सब नेक है।
जिसका दिल, जिसकी जुबां, दोनों का मकसद एक है।
अर्थात हमें मन, वचन, और कर्म तीनों से ही सत्य बोलना चाहिए। अगर मन में कुछ और सोच रहा हो और बोल कुछ और ही रहा हो, वह भी पूरी तरह से सत्य वचन नहीं है।
प्रियवचन – सत्य भाषण के साथ साथ वचनों में प्रेम का भी मिश्रण हो, जो दूसरों को सुनने में भी अच्छा लगे और मन को शान्त रखे। प्रेम भरे शब्दों में बहुत शक्ति होती है। प्रिय वचनों से आपके शत्रु भी आपके मित्र बन जाते हैं।
कागा काकौ धन हरै कोयल काको देत ।
मीठा शब्द सुनाये के जग अपनो कर लेत ।।
तीसरा चरण है हितकारी वचन : हमेशा वाणी से ऐसे वचन बोलें जिनसे दूसरों का उपकार हो, भला हो, कठोर और कटु वचन बोलने वाला न केवल शत्रुता मोल लेता है किन्तु अन्दर ही अन्दर मन में व्यथित, चिन्तित और दुःखी रहता है।
शब्द शब्द सब कोई कहे शब्द का करो विचार ।
एक शब्द शीतल करे एक शब्द दे जार ।।
तलवार के घाव तो भर जाते हैं किन्तु वाणी के घाव समय पर भी भरने कठिन होते हैं। पवित्र वाणी मधुरता से प्रेरित होकर इन्सान में सद्बुद्धि और ज्ञान का संचार कर शुभकर्मों में प्रवृत्त कराती है।
पिता का स्वरूप
आज हम अपने आप से प्रण करें कि जहां तक संभव हो सके हम सत्यवचन बोलें, प्रियवचन और हितकारी वचन बोलें जिसकी वाणी में नम्रता नहीं उसका ज्ञान और बुद्धि भी क्षीण यानी कमजोर हो जाती है। संत कबीर के दोहे का मनन करते हुए और आप सबका शुभचिन्तन चाहते हुए मैं बस यही कहूंगा :-
वाणी ऐसी बोलिये, मन का आपा खोय।
औरों को शीतल करे, आप भी शीतल होय ।।
सत्य बोलना सीखो
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