मानसिक शक्ति
मानसिक शक्ति के बारे में कौन नहीं जानता मानसिक शक्ति जितनी प्रबल होती जाती है हमारा मन भी उतना ही शक्तिशाली होता चला जाता है जिस प्रकार कहानियां रोचक तो होती हैं। किन्तु उन दृष्टान्तों से हमें जीवन में सरल ढंग से जो शिक्षा प्राप्त होती है। किसी भी उम्र में नादान बालक हो या कोई भी नर नारी किस्से कहानियां सुनने को उत्सुक हो जाते हैं क्योंकि उनका सुनना भी मधुर लगता है और उनसे कुछ सीख भी मिलती है। सन्तजनों ने भी इस बात की पुष्टि की :-
कहत कथा इतिहास पुरानी ।
रुचिर रजनी जुग जाम सिरानी ।।
एक बार एक साधु महात्मा अकबर के दरबार में पहुंचकर इधर उधर ताक-झांक कर रहे थे तो बीरबल ने कहा यह सम्राट का राजदरबार है आप देख रहे हैं कि हमारे राजा अकबर राजसिंहासन पर विराजमान हैं इन्हें नतमस्तक होकर प्रणाम कीजिये।
संत ने कहा कि मैं इसलिये यहां आया हूं क्योंकि मेरे मन में यह जिज्ञासा है कि आप अपने सम्राट से पूछ कर मुझे मेरे एक प्रश्न का उत्तर दिला दें कि आपके राजाओं के राजा सम्राट् अकबर अपने मन के दास हैं या मन उनका दास है उसी के अनुसार ही हमारा व्यवहार होगा।
तपस्या
बीरबल ने अकबर के पास जाकर उनके कान में यही प्रश्न पूछा तो राजा ने कहा यह भी कोई प्रश्न और पूछने की बात है | सभी मनुष्य अपने अपने मन के दास होते हैं। मेरा मन मुझे जैसा कहता है वैसा ही मैं करता हूँ। संत महात्मा राजा का यह उत्तर सुनकर मुस्करा दिये और कहने लगे कि ऐसे मन के पराधीन व्यक्ति को मैं झुककर क्यों प्रणाम करू ?
घोड़ा सवार के अधीन होने के बदले यदि सवार घोड़े के अधीन हो जाये तो ऐसा मन रूपी चंचल घोड़ा ही सवार को खाई में गिराता है। इस चंचल मन में जिसमें स्वार्थ, अहंकार भरा है उसे इस अंधकार से निकालना कोई सरल काम नहीं है।
इस दृष्यान्त में कितना बड़ा रहस्य छिपा है। आप सब भी इस बात से सहमत होंगे कि हमारा मन चंचल और चलायमान है हमेशा इधर उधर भटकता रहता है और इसे यदि स्थिर कर लें तो यही मन सब शक्तियों का भंडार है।
इसे यदि अच्छी ओर प्रवृत्त कर लें तो ऊंची से ऊंची मंजिलो तक भी जा सकता है और यदि इस पर नियन्त्रण न रक्खे इसे नियमों और अनुशासन में न ढालें तो यह टेढ़े मेढ़े रास्तों पर भागता-फिरता कांटेदार झाड़ियों में गिरा देता है इसलिये संत कबीरदास जी ने सरल शब्दों में कह दिया :-
मन की आटो अटपटी
झटपट लखे न कोय
मन की खटपट जो मिटे
चटपट दर्शन होय
यह मन ही मनुष्य के सभी बंधनों और मोक्ष का कारण है।
मनः एवं भनुष्याणं कारणं बंध मोक्षयोः ।
मन के हारे हार है मन के जीते जीत।
कहै कबीर गुरु पाईये मन ही के परतीत।।
शुभ विचार रखने से, पवित्र कार्य करने से, सत्संग में सेवा से हमारा मन निर्मल और शुद्ध होता है और जब आपका मन शान्त हो तभी वह भगवान स्मरण भक्ति की ओर प्रेरित करता है। यदि हम मन का संतुलन चाहते हैं सबसे पहले अपने मन को निर्मल और शान्त रखने का प्रयास करें। बहिर्मुखी वस्तुएं ही मन को अशान्त करती हैं।
प्रेम
मन मनसा जब जायेगी तब आवैगी और ।
तबहिं निश्चल होयेगा तब पावैगा ठौर ||
यह मन सत्संग, ज्ञान, सेवा से दूर रहकर अधम विषयों का सेवन करता रहेगा तो निश्चल और शान्त कैसे हो सकता है? हमारे पास जो है उससे मनुष्य का मन संतुष्ट नहीं होता। यह संसार का विधान है कि मन भटक कर यही देखता है कि दूसरे के पास क्या है? ऐसा ऐश्वर्य सम्मान मेरे पास क्यों नहीं है? यदि मानव इस बात की चिन्ता मिटा दे, तो मन स्वयं ही शान्त हो जायेगा।
अनुशासन में रहने के लिये विवेक की बुद्धि का डंडा हमेशा इस पर रक्खें। इस मन को हमेशा व्यस्त रखकर शुभकर्मों की ओर लगायें। इसलिये आज दर्शकों से मेरी यही प्राथना है कि कैसी भी परिस्थिति हो अपने मन में निर्मलता और शान्त भाव लाकर सत्त्वगुण को अपनायें। वैरभाव से, घृणा से, ईर्ष्या, द्वेष से मानसिक शक्ति क्षीण यानी कमजोर हो जाती है। इसलिये इसे स्थिर करने के लिये :
उठ रही लपटों की तरह,
बुझ जाओ बाती की तरह।
धीर धरो धरती की तरह,
सिंच जाओ माटी की तरह ।।
चिंता