ब्रह्मचर्य क्या है ? ब्रह्मचर्य दो शब्दों से मिलकर बना है ब्रह्म और चर्य | ब्रह्म का अर्थ है ईश्वर, वेद, ज्ञान और वीर्य आदि तथा ‘चर्य’ शब्द चर् धातु से बना है जिसका अर्थ है अध्ययन करना, चिन्तन करना यानी सोचना, विचार करना, अध्ययन करना यानी पढना तथा रक्षण करना अथवा रक्षा करना ।
इस प्रकार ब्रह्मचर्य शब्द का अर्थ हुआ ईश्वर-चिन्तन, वेद-अध्ययन, ज्ञान उपार्जन और वीर्य-रक्षण। परंतु आज हम बात करने वाले हैं वीर्य रक्षण की |
वीर्य क्या है ?
हम जो भोजन करते हैं, पेट में जाकर उसका रस बनता है | जब उस रस का स्थूल भाग यानी अन्य बचा हुआ भाग तो मल और मूत्र द्वारा शरीर से बाहर निकल जाता है शेष यानी बचे हुए रस का जठराग्नि में पंचकर रक्त यानी खून, मांस, चर्बी, हड्डी, मज्जा और मज्जा से सातवीं धातु यानी वीर्हैय बनता है| एक-एक धातु के निर्माण में लगभग पांच दिन लग जाते है तब जाकर यह वीर्य तैयार होता है। इस प्रकार लगभग दिन में जाकर यह वीर्य तैयार होता है |
दान की महिमा-The Glory of Donation
जो व्यक्ति हस्त मैथुन या अन्य बुरी चेष्टाओं के द्वारा अपने वीर्य को नष्ट करते हैं, उनकी आयु अवश्य ही कम हो जाती है। कहा जाता है :-
“मरण बिन्दुपातेन जीवन बिन्दुधारणात्”
अर्थात वीर्य का नष्ट करना मृत्यु है और वीर्य का रक्षण करना यानी रक्षा करना जीवनदायक है। अतः यजुर्वेद में लिखा है कि हमे वीर्य के महत्व को समझते हुए इस प्रकार कामना करनी चाहिए:-
आयुष्यं वर्चस्य रायस्पोष मौदिदम् । इदं हिरण्यं वर्चस्वज्जैत्रायाविशतादु माम् ।।
यानी कि यह आयु को बढ़ानेवाला, कान्तिदायक शक्ति, पुष्टि और स्फूर्ति देने वाला सभी प्रकार के रोगों का नाश करने वाला तेज और ओज प्रदान करने वाला यह वीर्य सदैव यानी हमेशा मुझमें बना रहे।ब्रह्मचर्य की शक्ति महान है। ब्रह्मचर्य की महिमा का गौरवगान करते हुए वेद तो यहाँ तक कहता है:-
“ब्रह्मचर्येण तपसा देवामृत्युमपाध्नत” (अथर्ववेद)
ब्रह्मचर्यरूपी तप से विद्वान और ब्रह्मचारी मृत्यु को भी मार भगाते हैं। इतिहास इस बात का साक्षी है कि ब्रह्मचारियों ने मृत्यु को भी अपने सामने आने नहीं दिया बल्कि उसे पीछे धकेल दिया है।
महाभारत के भीषण युद्ध में भीष्म पितामह अर्जुन के तीखे तीरों से घायल होकर शर- शय्या पर पड़े थे। सारा शरीर छलनी हो चुका था। शरीर पर एक इंच की इतनी भी जगह नहीं बची थी जहाँ तीर न लगा हो इतना होते हुए भी उन्हें कष्ट बिलकुल भी नहीं था| उनके मुखमंडल पर प्रसन्नता और मुस्कराहट साफ़ नजर आ रही थी |
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जब कुछ ऋषियों को भीष्म पितामह के दक्षिणायन यानी दक्षिण की ओर शरीर त्याग करने पर आश्चर्य हुआ तब भीष्म पितामह बोले, ” परमहंसों में मरा नहीं हूँ | अभी मैं जीवित हूँ | सूर्य के उत्तरायण में आने पर ही में अपने प्राणों का त्याग करूँगा | यह मेरी इच्छा है |
“शर शय्या पर लेटे हुए वे पाण्डवो को उपदेश देते रहे | मृत्यु उनके पास आती थी, परन्तु आकर फिर लौट जाती थी | जब सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण में आ गया , तभी उन्होंने अपने प्राणों का त्याग किया | यह है ब्रह्मचर्य का प्रचंड प्रताप । ब्रह्मचर्य क्या है ?
महर्षि दयानंद को अंतिम बार दूध में शीशा डालकर विष दिया गया | यदि किसी साधारण व्यक्ति को ऐसा विष दिया जाता तो एक अथवा दो मिनट में ही उसके प्राण चले जाते परन्तु महर्षि दयानन्द लगभग एक मास यानी महीने महीने तक जीवित रहे और मृत्यु से हमेशा लड़ते रहे |
ब्रह्मचर्य ऐसा साधन है जिसके सिद्ध होने पर कठिन से कठिन कार्यों में भी शीघ्र सफलता प्राप्त हो जाती है | ब्रह्मचर्य के बल से ही संसार सागर को प्राप्त किया जा सकता है |
एक कवि ने कितना सुन्दर कहा है : –
“सागर के ज्यों तरण में नौका प्रधान
त्यों भवसागर तरण में ब्रह्मचर्य प्रमाण”
जिस प्रकार समुद्र को पार करने के लिए नौका यानी नाव की जरूरत होती है, ठीक इसी प्रकार संसाररूपी दुख के सागर को पार करने के लिए ब्रह्मचर्य परम आवश्यक है,
अब बात करने वाले हैं ब्रह्मचर्य के साधन की:-
ब्रह्मचर्य के साधन
प्रातः काल जल्दी उठो | नियमित शौच, स्नान, संध्या, ध्यान और गायत्री मन्त्र का जप, प्राणायाम और सिद्ध-सर्वांगासन , धार्मिक पुस्तकों का स्वाध्याय | ब्रह्मचर्य – पालन में ये सभी बहुत सहायक हैं |
ब्रह्मचारी बनने के लिए क्या न करें ?
स्त्रियों के साथ बहुत अधिक बातें करना, एकांत में रहना, हंसी मजाक करना , उनके गुप्त अंगों को देखना आदि अस्त मैथूनों से दूर रहो| जब मार्ग में चलो रास्ते में चलो तब बंदरों की भांति लड़कियों को घूर – घूर कर मत देखो | पृथ्वी यानी नीचे जमीन को ओर देखकर गंभीरतापूर्वक चलो |
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गन्दी कथा कहानियाँ , सिनेमा से सम्बंधित पत्र-पत्रिकाएँ और गंदे उपन्यास न पढ़ें | यह सभी मस्तिष्क को यानी दिमाग को गलत कामों के प्रति भड़काते हैं | सिनेमा देखना, अधिक सुगन्धित तेल और पाउडर आदि का प्रयोग करना, यह भी ब्रह्मचर्य के लिए हानिकारक हैं |
अपने कमरों में देशभक्त, महावीर हनुमान, भीष्म-पितामह, भगवान् शंकराचार्य, महर्षि दयानंद, के चित्र लगाइए | उनके उपदेश और आचरण पर ध्यान देकर अपने चरित्र का सुधार कीजिये | अतः ब्रह्मचर्य ही जीवन है और वीर्यनाश ही मृत्यु है, इसीलिए ब्रह्मचारी बनो और संसार में चमक उठो |
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