प्रतिष्ठा

प्रतिष्ठा

इस तीव्र गति से बहती जिन्दगी में ऐसा कौन सा इन्सान है जो प्रतिष्ठा की चाहत नहीं रखता। इन्सान के लिये प्रतिदिन मान | सम्मान पाना जीवन का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। किन्तु मानना होगा कि प्रतिष्ठा एक ऐसा सुन्दर पंछी है जो जीवन की डाल पर थोड़ी देर चहचहाता है और फिर उड़ जाता है किन्तु फिर भी मनुष्य उसे पाने की तीव्र इच्छा रखता है। कारण स्पष्ट है कि सम्मान पाने से उसके भीतर उसके मन में अपने महत्त्व अपने उत्साह को बढ़ावा मिलता है।

यदि मनुष्य को जीवन में कहीं से भी सराहना नहीं मिलती तो स्वयं को वह साधारण और प्रगतिशील नहीं समझता। चाहे कोई गृहस्थी हो, दरिद्र हो, शाहंशाह हो, त्यागी हो उसके आन्तिरिक मन में प्रतिष्ठा पाने की लालसा छिपी रहती है। मानव, मन ही मन सोचता है कि उसकी इस भरे समाज में कोई पहिचान ही नहीं, वह जीवन को मामूली ढंग से जी रहा है।

परिणामस्वरूप वह अपने को हीन मानने लगता है जैसे एक मधुमक्खी विभिन्न फूलों से रस एकत्रित करती है चाहे उसे कटीली झाड़ियों और विषैले वृक्षों पर भी जाना पड़ा, ठीक उसी तरह हंस हंस कर कोई शेखी बधार कर, कोई अपने गुणों का बखान कर, कोई गायन से किसी न किसी रूप में अपनी महत्ता और प्रसिद्धि चाहते हैं। कोई व्यापार में ऊंचाई छू लेने पर और कोई त्याग करके अपने को श्रेष्ठ समझने का दावा करता है तो कोई अपने मुंह मिंया मिट्ठू बनकर अपनी बड़ाई बताकर प्रतिष्ठा पाना चाहता है।

प्रेम

यदि गम्भीरता से विचार किया जाये तो विनम्रता के आईने में प्रतिष्ठा का प्रतिबिम्ब स्पष्ट रूप से झलकता है। जैसे मिट्टी से भरे मैले दर्पण में आप अपनी छवि नहीं देख सकते उसी प्रकार यदि हमारे मन पर अहंकार की धूल जम जाये तो प्रतिष्ठा की चमक धुंधली हो जाती है। कहते हैं कि जिसके पास शोहरत की दौलत है। वह यदि पलकें झुकाकर चलते हैं तो दुनिया उन्हें पलकों पर बिठा लेती है। उन्हें ही सम्मान और प्यार देती है।

प्रतिष्ठा
प्रतिष्ठा

झुके वृक्ष पर ही अधिक फल लगते हैं ठीक उसी प्रकार जो इन्सान विनम्र है झुका हुआ है। समाज उसे उतना ही आदर सत्कार देती है। किन्तु जो अकड़ता है गर्वित रहता है वह निन्दा और घृणा का पात्र बनता है। स्वार्थ रहित कोयल व्यवहार का नाम ही विनम्रता है। प्रायः आपने भी अनुभव किया होगा कि प्रतिष्ठा मिलते ही कई लोगों की निगाहें बदल जाती है उनके पांव जमीन से ऊपर उठने लगते हैं

उनका रूप रंग और बोलने के ढंग में अन्तर आने लगता है जैसे एक बर्तन में छेद होने से उसमें भरा सारा जल बाहर गिर जाता है उसी प्रकार मान का घमंड इन्सान के दूसरे सभी गुणों को नष्ट कर देता है।

श्रीराम जी के चरणों में जब भक्त हनुमान ने सिर झुकाया तो मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने आशीर्वाद देते हुए उनके सिर पर हाथ रखते हुए कहा कि भक्त जब तुम नमन करते हो तो आशीर्वाद | मिलता है और ईश भी मिलता है उसे भगवन् की कृपा भी होती है। जहां समर्पण की भावना है वही प्रतिष्ठा की ऊँचाई भी है।

चिंता

प्रतिष्ठा के महल की छत तो बहुत ऊंची है किन्तु उसका दरवाजा बहुत नीचा है किसी शायर ने सच ही तो कहा है :-

‘अकड़ने से नाहक टूटेगा सर ।

दर है नीचा तू झुककर गुजर।’

जिस पेड़ की जड़ें खोखली है उसकी शोभा शीघ्र ही समाप्त हो जाती है। ऐसे ही बाहरी दिखावापन की मधुरता भी खोखली है। मधुर और विनम्र व्यवहार की आधारशिला यही है कि आपका बाहर और अन्दर समान स्तर पर है। आज एक बार अपने अन्दर झांक कर अवश्य देखें कि :

 

आपकी हंसी में कहीं छल तो नहीं।

आपकी मीठी मुस्कान में धोखा तो नहीं।।

परस्पर मेल मिलाप में कहीं स्वार्थ तो नहीं।

कहीं आपके सम्बन्ध और मित्रता आडंबर तो नहीं ||

अपने अन्तःकरण को टटोलेंगे तो प्रतिष्ठा का गहना आप पर हमेशा शोभा देगा।

क्या ईश्वर है भी या नहीं ?

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