दिनचर्या पर केन्द्रित मन
दिनचर्या पर केन्द्रित मन का होना बहुत ही जरूरी है, यानि अत्यंत आवश्यक है तभी तो संत कबीर दास जी का कथन है :-
ये हीरा जन्म अमोल है कोड़ी बदले जाय
अपने जीवन को हीरे के तुल्य बनाने के लिये मनुष्य को ‘मनसा वाचा कर्मणा’ अर्थात मन से, वाणी से और अपने मन को केन्द्रित कर उस पर अच्छी तरह से ध्यान देना होगा। प्रतिदिन अपनी दिनचर्या को सावधानी से उत्साहित होकर व्यतीत करना होगा क्योंकि किसी कवि ने सत्य ही तो कहा है :-
ओ भोले मानव सहारा जो गैरों का तकते रहे
दुनिया में वह इक तसवीर बन कर लटकते रहे
शरीर और आत्मा
एक सुन्दर दिनचर्या की रूपरेखा हम इस तरह से बना सकते हैं। प्रातः काल जल्दी उठना- जैसे जैसे एक मकान की नींव सुदृढ होने से आपका भवन पक्का और मजबूत होता है वैसे ही सुबह प्रातः काल का शान्त और सुन्दर वातावरण हमारे समय की दिनचर्या की नींव है। उस समय जैसी भी स्थिति हो उसका हमारी मानसिक अवस्था पर बहुत प्रभाव पड़ता है इसलिये उस शुभ समय पर नित्य प्रति ही हम अभ्यास करें कि आंख खुलते ही उस ईश्वर को स्मरण करें।
पूरे दिनभर चाहे आपने कितने ही कार्य व्यवहार क्यों न करने हों, उस भगवान् की स्मृत्ति में, मन में यह संकल्प करें और ईश्वर से प्रार्थना करें। ऐसा करने पर आप स्वयं अनुभव करेंगे कि इसका प्रभाव पूरे दिन आपके मस्तिष्क पर रहेगा। मन में यह भावना लायें कि ईश्वर कल्याणकारी, सुखदाता और शान्तिदाता है। मैं भी वैसे ही दूसरों का हित चाहने वाला कल्याणकारी और दूसरों को प्रसन्न रखने और सुख देने का निमित्त बनूं।
इस तरह थोड़े से समय में इन भावनाओं का मनन करके अपने दिन का आरम्भ करें।
‘योगी बनो या भोगी बनो पर बनो प्रभु के दास ।
खुशी से दिन कटेंगे लाओ यह विश्वास ।। ‘
उसके पश्चात् समयानुसार हमे ईश्वरीय ज्ञान योग का अभ्यास करना है। किसी भी ईश्वरीय रूप या धार्मिक ग्रन्थ या पुस्तक का अध्ययन जरूर करें जिससे आत्म बल की वृद्धि होती हो और दिन भर आलौकिक आनन्द और उत्साह बना रहता है। अपना दृष्टिकोण यही बनायें कि हम अपने सभी दोषों और अवगुण रूपी पत्थरों को निकालकर गुण रूपी रत्नों को जीवन में धारण करें।
दिनचर्या पर केन्द्रित मन करने के लिए अपना लक्ष्य निर्धारित करते हुए आदर्श नियमों का पालन करके दिन व्यतीत करना है। मेरे मन में अहंकार न आये, अपने काम, क्रोध, मोह, लोभ का त्याग कर सभी के साथ प्रेम से, सहयोग से, मैत्री भाव से व्यवहार करना है। अपने दैनिक कार्य को एक नाटक समझकर अपना अभिनय प्रसन्नता से निभाना है।
दिनचर्या पर केन्द्रित मन करने के लिए इस संसारिक जीवन में विशेषकर इस गतिशील दिनचर्या के कार्य व्यवहार में कई प्रकार के विघ्न और कठिनाईयां भी आती हैं। हानि, लाभ भी होता है, हर्ष, शोक की परिस्थितियां भी आती हैं किन्तु बुद्धि स्थिर करके कर्त्तव्य कर्म करते हुए सन्तुष्ट रहें।
अपमान
दिनचर्या पर केन्द्रित मन करने के लिए पुरुषार्थ और परिश्रम के पश्चात् भी जो हमसे नहीं हो सकता उसके लिए निराश और उदासीन न हों। यदि हम सांसारिक व्यर्थ बातों में फंसकर निराश होते हैं तो यह हमारी बहुत बड़ी भूल है उस समय मन में यह विचार लाना होगा कि जीवन को सुचारू ढंग से चलाने के लिये नियमित रूप से दिनचर्या का व्यतीत करना है।
दिनचर्या पर केन्द्रित मन करने के लिए हमें नाकारात्मक विचार मन से दूर करने हैं कि हमारी परिस्थितियां ठीक नहीं है। समय अनुकुल नहीं है, हमारा भाग्य ही ऐसा है। यह व्यर्थ ही मन की धारणाएं ही तो हैं जो हमें उदासीन करके कार्य में प्रवृत्त नहीं होने देती।
सांसारिक कर्त्तव्यों को निभाना हमारे जीवन का लक्ष्य है। अतः अपने को समेट कर उस प्रभु का ध्यान करना है। जिसके निमित्त से हम सब कार्य कर रहे हैं, जो मन सारा दिन बेलगाम घोड़े की तरह इधर उधर भटकता है उसे नियमित बनाना है।
हमेशा के लिये रहना नहीं इस दुनिया फानी में।
कुछ अच्छे काम कर जा चार दिन की जिन्दगानी में ।।
बहा ले जायेगा इक दिन यह दरिया ए फना सबको।
रुकावट आ नहीं सकती कभी इसकी रवानी में ।।
जब हम यह विचार करके अपनी दिनचर्या में उस ईश्वर का स्मरण करके सतोगुण को अपनायेंगे तो मन शान्त और सुखों से परिपूर्ण रहेगा ही रहेगा। अतः कबीरदास जी के इन शब्दों का चिन्तन अवश्य करें :-
‘सतनाम कड़वा लगे मीठा लागे दाम ।
दुविधा में दोनों गये माया मिली न राम ।।
हमारा जीवन सत्य पर ही आधारित हो
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