जितेन्द्रियता क्या है ? इस विषय को महर्षि मनु जी मनुस्मृति में कहते हैं :-
श्रुत्वा स्पृष्टवा च दृष्टवा, च भुक्त्वा घ्रात्वा च यो नरः । न दृष्यती ग्लायति वा स विज्ञेयो जितेन्द्रियः ।।
अर्थात् सुनकर, देखकर, खाकर और सूंघकर जिस व्यक्ति को न प्रसन्नता होती है और न ग्लानि यानि न ही खुशी होती है और न ही दुःख । वह व्यक्ति जितेन्द्रिय है ।संसार के समस्त पदार्थ यानी सभी चीजें आत्मा के लिए हैं| वे संसार के पदार्थों का उपभोग यानी प्रयोग करने का , use करने का आदेश देता है। अत: आप देखो और सुनो, परन्तु किस प्रकार इसका उत्तर यजुर्वेद के इस मन्त्र में है-
“भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः”
हम कानों से कल्याणकारी और हितकारी वचनों को सुनें तथा आँखों से सुख प्रदान करने वाले भले दृश्यों को देखें। आपकी भावनायें किस प्रकार की होनी चाहिए ?
रसगुल्ले भी खाओ , बर्फी भी खाओ, मालपुए भी खाओ पर इनके दास मत बनो, यानी इनके पीछे मत भागो, इनका addiction भी ठीक नहीं | जिव्हा यानी जीभ को अपने वश में रखो, आप जिव्हा के वशीभूत मत हो जाओ | सुन्दर वस्तु को देखकर उसके पीछे भागने मत लग जाओ | अपने कानों को राग-रंग और अश्लील गानों के पीछे मत जाने दो।
सुख और आनन्द में अंतर
यदि आप बलवान बनना चाहते हैं तो इन्द्रियों को अपने वश में करिए ” मै इन्द्र हूँ और ये इन्द्रियाँ यानी मेरे sens organs मेरी शक्तियाँ हैं | इस भावना को अपने जीवन में लाइए।
विनोबा भावे जी अपने विद्यार्थियों को शिक्षा देते हुए कहते हैं- ” विद्यार्थी अवस्था में ही संयम की महान विद्या सीख लेनी चाहिए जब आप संयम की शक्ति का संग्रह कर लेंगे तब एकाग्रता भी, जो जीवन की महान शक्ति है उसे पा लेंगे।”
इन्द्रिय निग्रह से शारीरिक स्वास्थ्य की प्राप्ति के साथ-साथ मानसिक पवित्रता की भी प्राप्ति होती है। इन्द्रिय-दमन यानी इन्द्रियों को बुरी चीजों से रोकने का प्रयास, जीवन को शांत, सहनशील और महान बना देता है।
नेपोलियन जब विद्यार्थी थे तब अपने उन्हें पढ़ाई के लिए कुछ समय अक्लोनी नामक गाँव में एक नाई के यहाँ रहना पड़ा। नेपोलियन एक सुन्दर नौजवान थे इसलिए उनके सौंदर्य को देखकर नाई की पत्नि उनपर मन्त्रमुग्ध हो गई और उन्हें अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयत्न करने लगी परन्तु नेपोलियन अपनी किताबों में ही व्यस्त रहते थे |
ईमानदार बनना क्यों जरूरी है ? – Why Honesty is to Important ?
जब अध्ययन समाप्त हुआ नेपोलियन फ्रांस के प्रधान सेनापति चुने गए। सचमुच जितेन्द्रियता मानव को महान बना देती है| अतः मन और इन्द्रियों का निग्रह करो। आध्यात्मिक विजेता बनो, कामवासनाओं और दूषित विचारों को अपने पास मत आने दो, उन्हें कुचल दो |
कामवासनाओं को रोककर धारणा, ध्यान और समाधि का अभ्यास करना कठिन कार्य है, परन्तु धैर्य, प्रयत्न, पुरुषार्थ, श्रेष्ठ पुरुषों का संग, दृढ़ संकल्प और आत्मविश्वास से सब कठिनाइयाँ दूर होकर मार्ग सरल और विघ्नरहित हो जाता है| अतः पुरुषार्थ करो, साहसी बनो, अंत में तुम ‘विजयी बनोगे ।
संयमहीन पुरुष हो अथवा स्त्री, युवक हो या युवती सभी का जीवन व्यर्थ और निकम्मा है। इन्दियों को निरंकुश यानी Control में न रखने वाले व्यक्ति का जीवन बिना पतवार की नौका के समान है जो पहली ही चट्टान से टकराकर चकनाचूर हो जाती है।
जैसे कछुआ अपने सभी अंगों को भीतर खीच लेता है इसी प्रकार आप भी अपनी इन्दियों को सभी विषयों से खींचकर जितेन्द्रिय बनो। आपकी वाणी मे संयम हो, कम बोलो, जो बोलो, मधुर और मीठा बोलो। भोजन में भी संयमी बनो, पेटू मत बनो। कम खाओ परन्तु कम खाने का यह अर्थ नहीं कि भूखे ही रह जाओ। सहनशीलवान बनो|
“सहनशीलं परं भूषणम्”
सहनशीलता मनुष्य का सबसे उत्तम आभूषण है|
स्त्रीयों का आदर और सम्मान करो, सड़क पर स्त्रियों को देखकर अश्लील चेष्टाएँ न करो । अपने से बड़ी स्त्रियों को माता के समान बराबर वालों को बहन के समान और छोटों को, बेटियों के समान समझो, उन्हें उन्हीं दृष्टि से देखो |
दान की महिमा-The Glory of Donation
जितेन्द्रिय बनने के लिए यह सबसे जरूरी है कि हर समय किसी न किसी काम में लगे रहो। अपने को आराम मत दो। जब आप पढ़ने बैठो, तो संसार के सभी विचारों को एक ओर रखकर पुस्तकों में ही खो जाओ। पुस्तकों के अतिरिक्त और कोई विचार आपके मस्तिष्क यानी दिमाग में न आने पाए |
सम्पदां कथितः पन्था इन्द्रियाणां हि संयमः
विपरीतस्तु विपदां येनेष्टं तेन गम्यताम् ।।
इन्दियों का संयम सम्पत्तियों का मार्ग है। इसके विपरीत असंयम विपत्तियों और पतन तथा दुख का मार्ग है। अब आप जिसे चाहो उसे चुन लो |
दान की महिमा-The Glory of Donation in video format