उपकार

उपकार

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उपकार

तुलसी इस संसार में, पांच रतन हैं सार ।

साध संग सत्गुरु सरन, दया दीन उपकार ||

इस अन्तिम शब्द उपकार पर कुछ विचार करने का प्रयास करूँगा। दूसरों की भलाई और परोपकार करने वाला उसी प्रकार सुखी होता है जैसे दूसरों की हथेली पर सुखद मेंहदी लगाने वाले की अंगुलियां खुद भी मेंहदी के सुन्दर रंग में रंग जाती है। रहीम जी ने इसी भावना को व्यक्त किया :-

यों रहीम सुख होत हैं, उपकारी के संग ।

बांटन वारे को लगे, ज्यों मैहंदी के रंग ||

जिस प्रकार एक फूल बेचने वाले के कपड़ों और शरीर से फूलों की सुगन्ध नहीं जाती उसी प्रकार दूसरों की भलाई करने वाले व्यक्ति का कभी अहित नहीं होता।

आत्मचिंतन करने का मुख्य समय
जीवन में परोपकार करने वाला चाहे प्रत्यक्ष रूप से नहीं किन्तु मानसिक रूप जितना शान्त और सुखी रहता है उसके महत्त्व की तुलना ही नहीं की जा सकती। यदि दीपक बन कर जल न सको तो अन्धकार भी मत करना यदि भला किसी का कर न सको तो बुरा किसी का मत करना इस प्रसंग में एक साधारण सी घटना है कि एक बुढ़िया अकेली रहती थी।

समय के साथ-साथ वह निर्बल और अस्वस्थ रहने लगी। कंधों में इतना दर्द अनुभव करती किन्तु अपने हाथों से दवा लेने और लगाने में असमर्थ सी हो गई। दर्द से कराहती, मन में बौखला कर वह सब जाने अनजाने लोगों से मिन्नतें करती। एक समय एक युवक उसके घर के बाहर से निकल रहा था, उसने धीमे स्वर से आशीष देने लगी कि ईश्वर तेरा बहुत भला करेगा, तेरी उन्नति होगी, तू जीवन में सुख पायेगा यदि तू मेरे ऊपर छोटा सा उपकार कर सकता है।

उसकी तू हालत देख युवक का दिल पिघला किन्तु कहने लगा कि मेरे हाथों में घाव होने के कारण इतना दर्द रहता है कि मैं तेरे कंधो की मालिश कैसे करूं? बुढिया ने कहा बेटा! मालिश की जरूरत नहीं केवल मेरे पास डिबिया में थोड़ी सी मरहम उसे कंधो पर गिरा दे।

अनिच्छा होते हुए भी युवक ने ऐसा किया और कुछ ही क्षण पश्चात् अनुभव किया कि उसके हाथों का दर्द भी कम हो गया। वास्तव में बुढ़िया के कन्धों में मरहम लगाने से बची खुची मरहम उसके अंगुलियों के घाव पर रह गई जिससे उसका दर्द भी कम हुआ और आशीर्वादों की वर्षा से मन भी प्रसन्न हुआ ।

सरलता

 

अपने उपकार का परिणाम देख वह सुबह शाम उस बूढी अम्मा के कंधो पर दवा लगाता जिससे वह दर्दमुक्त हो गई। तभी तो कहते हैं कि जो दूसरों के जख्मों पर मरहम लगाता है, दूसरों के दुःख दूर करने का प्रयत्न भी करता है उसके स्वयं के दुःख और जख्म भरने में देर नहीं लगती।

किसी को भी दुःख में सान्त्वना देना, किसी की पीड़ा को कम करना सहानुभूति करना यह उपकार के ही चिन्ह हैं। कहते हैं :- भला कर भला होगा, बुरा कर बुरा होगा।

आप भला तो जग भला, आप बुरा तो जग बुरा ।।

यह पीड़ा केवल शारीरिक ही नहीं मानसिक भी हो सकती है। यदि कोई किसी रूप से भी पीड़ित या दुःखित व्यक्ति पर उपकार करता है। तो दुःखी व्यक्ति के मन से दुआयें निकलती हैं, उसका मन उस व्यक्ति के प्रति कृतज्ञता से झुक जाता है और उस पर ईश्वर की कृपादृष्टि भी रहती है। किसी का उपकार करके भूल जाना किन्तु उपकार कराके कभी मत भूलना। किसी को कुछ दे कर भूल जाना किन्तु लेकर कभी मत भूलना ऐसे उपकारी के लक्षण होते हैं!

आज उस प्रभु से मेरी यही विनती है :-

हो पवित्र जीवन हम सभी के,

हे प्रभु हमें वरदान दो रास्ता सही अपना सकें,

हममें न अवगुण हो कोई हमें सदगुणों का दान दो,

हम काम औरों के आ सकें उपकार दूसरों के कर सकें,

ऐसी शक्ति हमें भगवान् दो।

क्या आप ईश्वर के दर्शन करना चाहते हैं ?

 

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