स्वाभिमान

स्वाभिमान

स्वाभिमान

आज हम बात करने वाले हैं स्वाभिमान की किसी ने क्या खूब कहा है :-

पर दोषों को देखकर मन में माना मोद |

अपना मन देखा नहीं जिसमें वैर विरोध ||

हमारे मन की एक ऐसी विचित्र अवस्था है कि वह बुराईयों से बहुत शीघ्र प्रभावित होता है और अपने गुणों को अपनी विचारधारा को ही सबसे उचित और श्रेष्ठ समझता है। आज जिस विषय में विचार रख रहा हूं वह है ‘अन्तर अभिमान और स्वाभिमान’

ईमानदार बनना क्यों जरूरी है ?

यह दोनो शब्द हमारी मानसिक गहराई के स्तर पर होते हैं। ‘अभिमान’ का शाब्दिक अर्थ लिया जाये तो इससे अभिप्राय है कि जब हम दूसरों को नीचा समझ या उन पर अपने अधिकार की भावना रखते हैं किन्तु ‘स्वाभिमान’ का तात्पर्य अपने भीतर विश्वास और भरोसा उत्पन्न कर आत्मबल को जागृत करना ।

दोनों में गहरा अन्तर और मौलिक भेद है। यदि स्वाभिमान जागृत होकर हमें प्रकाश की ओर ले जाता है किन्तु इन्सान का अभिमान उसको अन्धकार में इस तरह धकेलता है कि उसको अपने आप को ढूंढना भी कठिन हो जाता है।

एक स्वाभिमानी व्यक्ति कठिन से कठिन परिस्थिति में, अवस्था में भी अपना हौसला कम नहीं करता। उसके मन का विश्वास नहीं हटता उसके हृदय में आत्मबल बहुत प्रबल और दृढ़ रहता है यहीं उसके व्यक्तित्व का सौन्दर्य है उसकी प्रतिभा है, अलंकार है।

गालिब से पूर्व शेख सादी नाम के प्रसिद्ध शायर थे। उनके जन्मदिवस पर एक सुल्तान ने उन्हें एक कीमती हीरा भेजा और सन्देश में लिखा कि ‘आपने अपनी सारी आयु शायरी लिखने में व्यतीत कर दी भला इससे आपको क्या मिला? आपके पास इस मूल्यवान हीरे के समान कोई शायरी है? आप भी मेरे विषय में शायरी लिखेंगे, गाथायें |गायेंगे कि मैंने आपको एक अमूल्य हीरा भेंट में दिया है।’

वेदों में क्या है ?

शेख सादी ने उस हीरे को उलट-पलट कर देखा और शाही सुल्तान का पत्र भी पढ़ा जिसमें उसका अभिमान झलक रहा था। उत्तर में स्वाभिमानी शेख सादी ने लिखा कि ‘मेरी शायरी का एक-एक शब्द आपके भेजे हुए हीरे से अधिक मूल्यवान है। आपका हीरा मेरी शायरी से क्या बराबरी कर सकता है।

मेरे लिखे हुए शब्द लोगों के दिलों पर असर करते हैं, बिछड़े दिलों को सूकून देते हैं, पुल बन कर किनारों को जोड़ते हैं, स्नेह ओर दुलार से लोगों के मन को पिघलाते हैं जबकि आपका यह हीरा जलन, राज्यों के बीच युद्ध और शोषण को निमन्त्रण देता है, आपका यह हीरा किसी की न तो भूख मिटा सकता है न मन को शान्ति दिला सकता है। आपका यह बहुमूल्य हीरा आपको मुबारक ।

‘ शेख सादी ने यह पत्र लिखकर हीरा उस सुल्तान को वापिस भिजवा दिया। कितना ज्वलन्त उदाहरण है?

स्वाभिमान

स्वाभिमानी व्यक्ति के अन्दर अपना मान-सम्मान होता है वह गौरव के साथ अपन मस्तक ऊंचा रखता है दूसरों की संपदा से प्रभावित नहीं होता। स्वाभिमान हमें मार्ग दर्शन करता है किन्तु अभिमान कुछ करने के बदले झूठा, दंभ, अहंकार भरता है। अपनी प्रशंसा सुनने, अपने को लोकप्रिय बनाने, अपनी यशोगाथा सुनने के लिये उसके कान तरसते हैं और उसी ओर अपनी शक्ति लगाता है।

साहित्य के पन्ने उल्टें तो आप देखेंगे कि रावण, कंस, जरासंध, दुर्योधन आदि अभिमानी सोचते रहे कि दुष्टप्रवृत्तियों से वह अपने दुष्कर्म करने में सफल होंगे किन्तु क्या ऐसा हुआ? नहीं न!

हमें अपने अन्दर स्वाभिमान को तो जागृत करना है और अभिमान के विष को दूर कर देना चाहिए। स्वाभिमान यदि जीवनदायी और मानसिक शान्ति का कारण है तो अभिमान हमारे पतन और विनाश मन की उथल पुथल का कारण बनता है। लघुता से विशालता की ओर बढ़कर जीवन के सनातन रहस्य को समझना है। संत कबीर ने कितने सुन्दर शब्दों में अभिमान और स्वाभिमान में अन्तर रखते हुए कहा :-

कबिरा गर्व न कीजिये ऊंचा देख आवास ।

काल परा भुई लेटना, उपर जमसी घास ॥

सतसंग की महिमा
satyagyan:

View Comments (0)