सपनों की दुनियां
सपनों की दुनियां:- मानव का यह मानसिक राज्य भी कैसा विचित्र है! इसमें विभिन्न सपने, कल्पनाएं, दुविधायें, देखी, सुनी और बिन देखी भी सभी बातें हमारे मस्तिष्क में दिन रात घूमती रहती है।
बीती रात सपनों की रात
देखे भी नहीं, किन्तु बहुत देखे
स्वप्न ही स्वप्न
अच्छे और बुरे देखे
बुरे ख्वाब इन्सान नहीं देखता
अगर वह उन पर अंकुश लगा सकता
है स्वप्न भी इस जीवन की तरह
इन्सान हमेशा खुशियां पा नहीं सकता
भगवान या ईश्वर दोनों अलग हैं?
इस मन के सपनों में विचरने के लिये हम पूर्ण स्वतंत्र हैं। इसके सिवाय आपके किसी और की पहुंच नहीं है। सपनों की दुनियां ऐसी है जिसमें न तो आपके आन्तरिक मन में कोई झांक सकता है न आपका कोई कुछ भी सोचने पर आपत्ति कर सकता है। क्योंकि हमारा मन और मस्तिष्क एक साथ मन्थन हो चिन्तन करते ही रहते हैं। उनमें से कुछ विचार और सपने हमारे जीवन पर अधिक प्रभाव डालते हैं।
उपकार
जागृत अवस्था में तो मनुष्य किसी सीमा तक अपने सपनों पर संयम रख सकता है किन्तु सुप्त अवस्था में सोते हुए सपनों पर न तो अंकुश लगा सकता है न अपना स्वामित्व। सपने न तो किसी को बता कर आते हैं और न हीं हमें इनको देखने का कोई मूल्य चुकाना पड़ता है। कई सपने तो हमें इतना चिन्तित और भयभीत कर देते हैं कि हमारा मस्तिष्क उन पर नियन्त्रण ही नहीं कर पाते और दूसरी ओर कई सपने इतने रोमांचित होते हैं कि उन्हें भुलाना असम्भव लगता है जबकि हम । यह अच्छी तरह जानते हैं कि वह सच नहीं केवल स्वप्नमात्र ही है।
ईश्वर ने इस शरीर का निर्माण पांच तत्त्वों ( अग्नि, वायु, जल, आकाश, पृथ्वी ) से किया है जिस कारण हम किसी वस्तु का अभाव यानी कमी अनुभव न करें। उसने शरीर के अंग देकर आवश्यकता के रूप में हमें सब कुछ प्रदान किया है ताकि हम उनका सदुपयोग करके अपने सपनों को पूरा कर सकें।
किन्तु इन्सान अज्ञानता के कारण अस्त व्यस्त रहकर झूठे दिलासे के चक्कर में इच्छाओं के वशीभूत होकर अपने को यानी स्वयं को ही विनाश की दीवारों में बांध लेता है और कभी अपने कर्मों को तो कभी अपने भाग्य को दोषी ठहराता रहता है।
नववर्ष अभिनन्दन
यदि वह सपने देखना अपने वश में होता तो हम हमेशा सुन्दर सपने संजोते यानी सुन्दर सपने ही देखते और दुनिया में सर्वत्र आनन्द, उल्लास, खुशीयां व्याप्त रहती। कोई भी भूखा, प्यासा, दीन, दुःखी न होता। समाज में सभी चरित्रवान और परोपकारी होते इसलिए इन सपनों की दुनिया पर अधिकार न होते हुए भी हमें सपनों को साकार करने के लिये सकारात्मक स्वरूप देना होगा। संयमित और नियमानुसार धर्मपालन कर अनुशासित जीवन जीना होगा। छल, कपट, निन्दा, त्याग, निष्ठा व ईमानदारी को अपना ध्येय बनाना होगा।
तभी हम इस सपनों की दुनियां को सही से समझ सकते हैं, इसका अनुकरण कर सकते हैं, असल में सपनों की दुनियां जैसी दिखती है वैसी होती नहीं है, इसे बनाना पड़ता है अपनी मेहनत से, अपने लगन से, अपनी ताकत से, अपने प्रभुत्व से और अपने सम्पूर्ण समर्पण से। सपनों के भी दो मुख्य प्रकार होते हैं। पहला तो वह है जो रात को सोने के पश्चात आते हैं और दूसरा वह जो हमें सोने ही नहीं देते, चाहे हम उसके लिए कितने ही मेहनत क्यों न कर लें।
किसी कवि ने इस तथ्य को चन्द शब्दों में ही व्यक्त कर दिया :-
सपनों के सागर से कुछ मोती ऐसे चुन लो
जो साकार कर उन्हें धरती पर
कुछ ऐसे संस्कार चुन लो
सूरज की रोशनी भी न मिले अगर
तो चमको गगन पर उनकी झंकार तुम सुन लो
आज ईश्वर से मेरी यही प्रार्थना है कि ईश्वर हमारे सभी सपनों को साकार रूप से पूर्ण करे ।
क्या ईश्वर है भी या नहीं ?
आपका शुभचिन्तन