विश्वास
भगवान् के प्रति अपने विश्वास को दृढ़ करने के परिणाम से हम सब अवगत हैं कि ईश्वर अपने में आस्था, श्रद्धा और विश्वास रखने वालों से प्रेम करते हैं। आज इसी विषय पर कुछ महत्वपूर्ण विचार प्रस्तुत कर रहा हूं।
गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को यही उपदेश दिया कि ‘तू मुझ में विश्वास कर’ क्योंकि भगवान् अपने भक्त को कभी असहाय नहीं होने देते। सभी सम्बन्धों को स्थित रखते हुए भी ईश्वर में विश्वास ही एक महान् अनुभव है। रामायण में इसी तथ्य को कितने सुन्दर शब्दों में कहा :-
बिनु विश्वास भक्ति नहीं तोहि बिनु द्रविहं न राम ।
राम कृपा बिनु सपनेहूं जीव न लहे विश्राम ||
इन भावुक की भावनाओं से हट कर एक सरल सा उदाहरण हैं कि एक बार एक पिता अपने छोटे से बालक को सड़क से पार दूसरी तरफ ले जा रहा था। स्वभाविक था कि उसने बच्चे से सावधानी बरतने के लिये कहा कि देखो गाड़ियां दोनों तरफ बहुत जोर और जल्दी से आ रही है। मैं तुम्हारा हाथ तो जरूर पकडूंगा पर तुम दायें-बायें, इधर-उधर देख कर मेरे साथ जल्दी आना और सावधान भी रहना।
आत्मा और परमात्मा दोनों ही अलग हैं
जब मोड़ पर लाल बत्ती हुई तो पिता बच्चे को खींचते घसीटते, सड़क के दूसरी ओर पहुंचे तो क्या देखते है कि बच्चे की आंखे बिल्कुल बन्द थी, उसने पिता का हाथ जोर से थामा था। पिता क्रोधित हुआ गुस्से में पूछने लगा कि बेटा मैंने तुम्हे सावधान होने के लिये तथा इधर-उधर देखकर सड़क पार करने के लिये कहा था।
बच्चे ने निर्भयता से मुस्करा कर उत्तर दिया आपने मेरा हाथ इतनी जोर से और पकड़ा हुआ था, मुझे पूरा भरोसा और विश्वास था कि आप मेरा अच्छी तरह से ध्यान कर रहे हैं इसलिये मैंने आंखे बन्द कर ली थी। उसी तरह हर व्यक्ति इस जीवन की दौड़-धूप में सुबह शाम भाग तो रहा है किन्तु श्रोताओं से मेरा यही प्रश्न है कि क्या इन्सान का ईश्वर में इतना दृढ़ विश्वास है, जैसा कि उस नन्हे बालक का पिता पर था ?
ईश्वर में दृढ़विश्वास से मन में आशा का जन्म होता है और आशा से अच्छी बुद्धि का विकास होता है। हमारी सोच ही हमारी परिस्थितियां बन जाती है। जैसा जैसा हम विचार करते हैं या विचार करते चले जाते हैं ठीक उसी प्रकार के वातावरण का हम स्वयं ही निर्माण करते हैं।
माना परिवर्तन संसार का नियम है। कोई भी वस्तु, व्यक्ति या परिस्थिती इन्सान को न तो सुख दुःख का मार्ग दिखाती है न मन की शान्ति देती है यदि उसे भगवान् के मंगलमय विधान में अटल विश्वास नहीं।
गीता सार में यही कहा ‘जो कुछ भी तू करता है उसे ईश्वर में विश्वास रख कर अर्पण कर उसी तू सारे जीवन में आनन्द का अनुभव करेगा’। गुरु नानक जी ने भी इसी का समर्थन किया:
“सुन मन भूले भांवरे गुरु चरणी तू लाग”
उसकी मान्यता प्रत्येक व्यक्ति का प्रयत्न होना चाहिए। जीवन में सच्ची शक्ति, सच्चा सुख और सच्ची सफलता का रहस्य आत्म विश्वास है। जब भगवान् में अटल विश्वास हो जाये तो जीवन का मार्ग सरल और सहज हो जाता हैं। जहां वाद विवाद है वहां न परमार्थ है न आत्म सम्मान है, न जीवन का सुख है।
संयम
आज मेरा यही प्रार्थना है कि हमारा उस परम पिता में उतना ही प्रेम और दृढ़ विश्वास हो जितना कि उस नादान बच्चे का आंख बन्द किये अपने पिता में था । वही हमारी जीवन नैय्या को सुरक्षित रख भवसागर से पार करवायेगा।
अन्त में इतना ही कहूंगा :-
सुने न काहू की कही, कहे न अपनी बात ।
नारायण का रूप में, मग्न रहे दिन रात ||
सरलता
आखिर मांस खाने वाला हर इन्सान पापी क्यों होता है ?
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