भगवान के दर्शन
आज हम जानने वाले हैं भगवान के दर्शन के बारे में कहा जाता है:-
मुद्दत तड़पता हूं दीदार नहीं होता
क्यों लुफ्तों करम मुझ पर सरकार नहीं होता ।।
आंखों में वह फिरता है, नजरों में समाया है।
फिर भी यह क्या तमाशा है कि दीदार नहीं होता ।।
शद साहिब ने यह शायरी लिखकर सुन्दर शब्दों में यह चरितार्थ कर दिया कि चाहे प्रत्येक व्यक्ति प्रत्येक धर्म उस महान सत्ता को देखते हुए भी देख नहीं पाता। भगवत गीता के माध्यम से श्रीकृष्ण ने जीवन में जीने की कला तो सिखाई है और यह भी स्पष्ट कर दिया है कि मेरा भक्त ज्ञानी है, वह मुझ में ही समाया हुआ है और मुझे प्रिय भी है।
उस भगवान् का दर्शन पाने की उत्सुकता में ज्ञानी व्यक्ति का अहम्, अभिमान और दम्भ समाप्त हो जाता है उसका अपनी मनोवृत्तियों में दूषित विचारों को निकाल कर नियन्त्रण हो जाता है। सरलता, सहनशीलता और धैर्य्य उसके स्वभाविक गुण बन जाते हैं। अज्ञान के अंधकार में ढ़का व्यक्ति कभी तृप्ति नहीं पा सकता।
संसारिक वासनाओं की जितनी तृप्ति हो जायेगी उनमें तो वृद्धि होती ही जायेगी इस तथ्य को प्रमाणित करने के लिए एक प्रसंग सुना रहा हूं।
क्या आप भी ईश्वर के दर्शन करना चाहते हैं
एक राजा था, एक दिन वह शिकार खेलने गया। आंधी तूफान के कारण जंगल में मार्ग भटक गया, रक्षक साथी भी छूट गये, रात अंधेरी थी दूर पर एक झोंपड़ी दिखाई दी जिसमें एक दिये की रोशनी टिमटिमा रही थी। थोड़ा सा आश्वासन मिला। वहां पहुंचा तो देखा कि आसपास बहुत गंदगी है बदबू भी आ रही थी, मृत जानवरों की खाले भी इधर उधर बिखरी हुई थी।
निराशा से और कोई सहारा न देख झोपड़ी के अन्दर झांका और उसके मालिक से कहा मुझे यहां आस पास कोई सुरक्षित स्थान बता सकते हो तो बड़ी कृपा होगी। राजा को झोपड़ी के भीतर जाने में बहुत संकोच हो रहा था। झोपड़ी के मालिक ने कहा आप अन्दर आईये ओर विश्राम कीजिये। सारी रात वह अतिथि सत्कार करते हुए धीमें स्वर में प्रभु स्मरण करता रहा।
राजा को इतनी गहरी नींद आई और इतना सुख मिला कि उस झोंपड़ी से निकलने को उसका मन ही नहीं हुआ। तब एक मुनि ने प्रश्न किया कि ऐसा मूर्ख राजा कौन होता है जो टूटे हुये, गन्दी झोपड़ी में अत्यन्त मानसिक सुख का अनुभव करे?
मुनि शुकदेव ने सरल शब्दों में इस प्रश्न का उत्तर प्राणीजात को समझाया कि ऐसे ही मूर्ख राजा जैसे की हम संसारिक सब प्राणी हैं। इस नश्वर संसार और नश्वर शरीर में हम ऐसे रम जाते हैं कि यहां से जाना ही नहीं चाहते। संसार के सम्बन्धों को ही स्थायी और महत्त्वपूर्ण मानने लगते हैं यदि हम झोपड़ी में भी सुख पूर्वक सन्तोष से भगवन् पाने की प्रबल इच्छा अथवा भगवान के दर्शन की दृढ़ इच्छा रक्खें तो शान्ति की नींद ले सकते हैं।
निसक्त भाव से, मन से, अपने कर्त्तव्यों को निभाते रहें और दुष्प्रवृत्तियों में पड़कर मोह, माया जैसे अज्ञान-ताओं से और पाप के बन्धनों से स्वतन्त्र रहें यानी मुक्त रहें।
नवरात्रि
संत तुलसी दास जी ने कहा:
ईश्वर अंश जीव अविनाशी ।
चेतन अमल सहज सुख राशी ।।
भगवान् को पाने की प्रबल इच्छा ही हमें उसके समीप यानी पास ले जाती है। इस सृष्टि में सर्वत्र जड़, चेतन, पशु, पक्षी, पेड़ ,पौधे, जीव जन्तु सभी में ईश्वर विद्यमान है। यदि आवश्यकता है तो विश्वास की और भक्तिभाव को जागृत करने की। किसी शायर ने इसे कितने सुन्दर शब्दों में इस भावना को व्यक्त किया है :-
समझ में कुछ आता नहीं, ये क्या तेरा करिश्मा है।
जुदा तेरे न रहने पर सदमा है जुदाई का ।
तेरी जलवानुमाई में करिशमा यह नया देखा ।
तुझे हा शे में देखा, और हर शे से जुदा देखा ||
क्या ईश्वर है भी या नहीं?
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