प्रेम

प्रेम

प्रेम

‘प्रेम’! इस ढाई अक्षर के शब्द में विचित्र आकर्षण और अद्भुत जादू है। प्रेम में वह जादू है कि शत्रु भी अपना मित्र बन जाता है। प्रेम से प्रेम उत्पन्न होता है, क्रोध से क्रोध, घृणा से घृणा और द्वेष से द्वेष। यदि आप चाहते हैं कि दूसरे आप से प्रेम करें तो आप भी सबके साथ प्रेम करें। स्मरण रखो-

ईशावास्यमिदथं सर्वम् ।(यजु० ४०।१)

यह सारा संसार ईश्वर से आच्छादित है, ढका हुआ है। ईश्वर इसमें ओत-प्रोत है, अतः घृणा, ईर्ष्या, जलन, शत्रुता और दूसरों को अपमानित करने की भावनाओं को अपने हृदय से निकाल दो। सबकी सेवा करो। सबका सम्मान और आदर करो। सबके साथ प्रेम करो और सबमें ईश्वर के दर्शन करो। आँखों में स्नेह, हृदय में प्यार और वाणी में मिठास हो ।

अन्यो अन्यमभि हर्यत वत्सं जातमिवाघ्या ।(अ० ३ । ३० । १)

एक-दूसरे के साथ ऐसा प्रेम करो जैसे गौ अपने नवजात शिशु के साथ करती है। गाय के प्रेम में स्वार्थ की भावना नहीं होती। हम भी ऐसा ही प्रेम करना सीखें। पापी से भी प्रेम करो। किसी ने कितना सुन्दर कहा है-

Hate the sin, but love the sinner.

अर्थात् पापी से घृणा मत करो। हाँ, पाप से बचो। सार्वभौम प्रेम उत्पन्न करो। प्राणिमात्र से प्रेम करो। ।

वेद के शब्दों में आपकी ऐसी भाव्य-भावना होनी चाहिये-

मित्रस्याहं चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षे।(यजु० ३६ । १८)

मैं संसार के सभी प्राणियों को मित्र की दृष्टि से देखूं । आपके जीवन का आदर्श हो-

Love your enemies, bless them that curse you,

do good to them that hate you.

अपने शत्रुओं से भी प्यार करो। जो आपको गाली देते। हैं उन्हें आशीर्वाद दो, जो आपसे घृणा करते हैं उनके साथ श्रेष्ठता का बर्ताव करो । प्राणिमात्र से प्रेम की भावना घर से आरम्भ होती है। पहले अपने माता-पिता के साथ प्रेम का व्यवहार करो। अपने भाई-बहन, बन्धु-बान्धव, पड़ोसी, समाज, देश और से प्रेम करो, फिर अपने प्रेम की परिधि को बढ़ाते हुए राष्ट्र संसार के प्राणिमात्र से प्रेम करो ।

प्रेम

अपने देश के लिए यदि अपने प्राणों की बलि भी देनी पड़े तो हँसते-हँसते दे दो। भारतीय वीरों के आदर्श को सदा अपने सम्मुख रखो। एक भारतीय वीर का अपने देश के प्रति सच्चे प्रेम का मार्मिक उदाहरण पढ़िये-

मनीला (बर्मा) में ‘आज़ाद हिन्द फ़ौज‘ और अंग्रेज़ों में भीषण युद्ध हो रहा था। आज़ाद हिन्द सेना के सेनापति पहाड़ों की तलहटी में बनी सुरंग में बैठे थे। ऊपर पृथिवी पर गोलाबारी हो रही थी। सहसा एक भारतीय सैनिक, जिसका एक हाथ युद्ध में कट गया था, दौड़ता हुआ उस सुरंग में आया। जनरल शाहनवाज़ ने उसे सान्त्वना देने के लिए कुछ शब्द कहे तो वह गर्व के साथ बोला, “जनरल ! शोक या खेद की कोई बात नहीं है। मैंने अपना यह शरीर और जीवन भारत माता के अर्पण किया था। उसमें से उसने एक हाथ स्वीकार कर लिया है, यह तो मेरा पुरस्कार है।”

आनन्द

देश-प्रेम का कैसा ज्वलन्त उदाहरण है ! जिस व्यक्ति में दूसरे के लिए प्रेम नहीं, सहानुभूति नहीं, जिसके हृदय में प्रेम की हिलोरें नहीं उठतीं, जो प्रेम का पुजारी नहीं, वह जीवित हुआ तो क्या है ! वह वस्तुतः तो मृतक के समान है। कबीर जी के शब्दों में-

जा घट प्रेम न संचरै, सो घट जान मसान ।

जैसे खाल लुहार की, साँस लेत बिनु प्राण ॥

प्रेम से न केवल इस लोक में ही सफलता मिलती है, अपितु यह परलोक को सुधारने में भी सहायक होता है। इस विषय में पोप ने कितना सुन्दर कहा है—

Love is ever a golden ladder,

Whereby the heart ascends to Heaven. (Pope)

प्रेम वह स्वर्णिम सीढ़ी है जिसके द्वारा मनुष्य स्वर्ग को

आरोहण करता है। जिस प्रकार दो ईंटों के मध्य में चूना अथवा गारा रखने से उनमें दृढ़ता आ जाती है, इसी प्रकार दो व्यक्तियों में स्थिरता और दृढ़ता उत्पन्न करने के लिए प्रेमरूपी ग़ारे की आवश्यकता है।

चिन्ता

प्रेम वह अग्नि है जिसमें पाप और ताप जलकर भस्म हो जाते हैं। प्रेम की अग्नि में अपने मन, वचन और कर्म को पवित्र करो। प्रेम के पवित्र सागर में डुबकियाँ लगाकर स्नान करो। प्रेम के माधुर्य का आनन्द अनुभव करो और प्रेम की प्रतिमा बन जाओ। मिलकर एक-दूसरे की रक्षा करो। लड़ाई- झगड़ा आपके निकट न आये। कभी परस्पर द्वेष मत करो, एक-दूसरे से स्नेह करो ।

प्रेम में महान् शक्ति है । यह रोगों को दूर करके आयु को बढ़ाता है और आनन्द-धन की प्राप्ति कराता है। यदि आप अपने जीवन को सुखमय और आनन्दमय बनाना चाहते हैं तो अपने जीवन में प्रेम का महासागर भरो। वृक्षों को देखो! वे अपने शत्रु को भी जो उसे कुल्हाड़ी से काटता है, शीतल छाया प्रदान करते हैं । यही है वास्तविक प्रेम, मनुष्य का महान् धर्म! प्रेम करो और प्रेममय हो जाओ।


दयालुता

सत्य बोलना सीखो
satyagyan:

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