नववर्ष अभिनन्दन

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नववर्ष अभिनन्दन

नववर्ष अभिनन्दन दो हजार तेईस (२०२३) में अपने सभी दर्शकों और श्रोताओं का नतमस्तक हो अभिनन्दन करता हूँ। नववर्ष की आप सबको शुभकामनाएं हैं कि यह वर्ष आपके लिये सुख, समृद्धि और शान्ति लाने वाला हो। आपका जीवन सर्वदा सुगन्धित फूलों की तरह महकता रहे और आपकी शुभ भावनाएं और विचारों की सुगन्ध दूसरों के जीवन को भी निरन्तर महकाती रहे।

मानव कल्याण से पनपे सदाचार प्यार और परोपकार सुख समृद्धि से हो भरपूर आप सबका परिवार। आपके जीवन में सबसे प्रेम सहानुभूति और परोपकार की भावना का साहस बना रहे। नववर्ष का आगमन चन्द्रमा की भांति शीतल और सुखमय की तरह आये जिसमें अच्छे दिनों की आशा हो जो जीवन की समस्याओं रूपी अमावस्या को पूर्णिमा में बदल दें।

हम सब इस बात से अवगत हैं कि हम मनुष्यों को यह | संसारिक जीवन अनजान अवधि के लिये मिला है। क्योंकि आज भी हम जी पाते नहीं, कल का कुछ जानते नहीं। इस पल का हमें होश नहीं, जब राहे ही हमें मालूम नहीं ॥ इसलिये इसे सुन्दर ढंग से व्यतीत करने का प्रयत्न करें। इन झूठे आकर्षणों, उलझनों और चिन्तित रहकर जीवन बिताना क्या मानवता है?

हमारा कर्त्तव्य यही है कि हम सुचारू रूप से नियमित ढंग से जीने का प्रयास करें तथा दूसरों को भी कलात्मक ढंग से जीवन बिताने में सहायक बनें तभी हमारे जीवन का उद्देश्य सफल हो सकता है।

नववर्ष अभिनन्दन

यह दुर्लभ और मूल्यांकन जीवन हमें इसलिये प्राप्त हुआ है कि हम अपने व्यक्तित्व का पूर्ण रूप से विकास करें क्योंकि यह जीवन एक संग्राम है इसमें विजय उन्हीं को प्राप्त होती है जो  पुरुषार्थ से, परिश्रम से कार्य करते हैं। एक नदी को भी समुद्र तक पहुंचने के लिए चट्टानों से टकराने के पश्चात ही प्रवाह करने की शक्ति मिलती है और तभी बह सकती है।

सरलता

 

जिन मनुष्यों में संसारिक कष्टों और दुःखों को झेलने की शक्ति नहीं होती वह कैसे प्रगति और उन्नति कर सकता है? मानव को उन्नति के लिये सफलता के अमृतफल तोड़ने के लिए कठिनाईयों के ऊंचे वृक्षों पर चढ़ना पड़ता है, कई मुसीबतों को झेल कर गिर गिर कर भी उठना पड़ता है। साहस से, आत्मबल से कष्टों को रौंदते हुए मुस्कराते हुए आगे बढ़ने का प्रयास करने वालों को ही जिन्दगी जीने का अर्थ समझ आने लगता है।

मनुष्य एक समाजिक प्राणी है अपने जीवन में सुख सुविधाएं बनाने के लिए अपने परिवार, अपने सम्बंधियों, मित्रों, समाज की व्यवस्था करता है। जब उसके हृदय में एक दूसरे के प्रति स्नेह, सहयोग, सहानुभूति, करूणा की भावनाएं होती है वही व्यक्ति सुखी जीवन व्यतीत करता है। स्वार्थी व्यक्ति का जीवन सीमित सा हो जाता है।

आज के समाज में स्वार्थपूर्ण संयम की प्रधानता दिखाई दे रही है। प्रगति के साथ, आज का युवा समाज संसार का सब कुछ अपने लिये ही बटोरकर रखने की प्रवृत्ति में संलग्न है। यदि मानव | अपने को शान्त और सुखी चाहता है तो उसे अपने हृदय में ‘सर्वे भवन्तु सुखिन: ‘ की भावना को जगाना होगा। निःस्वार्थ होने का अंश लाने का प्रयास करना ही होगा।

गायत्री मंत्र की महिमा
ऐसा तभी सम्भव है जब हम अपने हृदय में ईश्वरीय गुणों को  विश्वास करके उन्हे विकसित करें। धर्म और संस्कृति पालन करने का प्रयोजन भी यही है कि हम जीवन में नियन्त्रण लायें, केवल शरीर से ही नहीं किन्तु अपने मन से भी बुरे विचार, किसी के प्रति ईर्ष्या, घृणा, जलन आदि दुष्प्रवृत्तियों को त्याग करें तथा नियमों का पालन करते हुए, कर्त्तव्यों को निभाते हुए हमेशा सत्धर्म की ओर अग्रसर रहें।

आत्मनियन्त्रण ही हमें धैर्य व परिश्रम से आत्मिक शक्त्तियाँ प्रदान करता है और हमें तभी उल्लासमय, उत्साह उमंग से जीवन जी सकते हैं। इस नववर्ष में मेरी आप सब के लिये यही सद्भावना है, अंत में आप सभी को नववर्ष की बहुत बहुत शुभकामनाएं

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