नवरात्रि

नवरात्रि

नवरात्रि

नवरात्रि का शुभपर्व है और सभी पूजा स्थानों पर दुर्गा स्तुति की महिमा का गायन हो रहा है। हिन्दू धर्म, हमारी संस्कृति न केवल उत्सवों त्यौहारों किन्तु धार्मिक पर्वों से भी बंधी है। नवरात्रि के पर्व पर आस्था श्रद्धा और विश्वास को देख मैंने आज उसी विषय को समझने का प्रयत्न किया है।

नवरात्रि पर्व नवशक्ति का प्रतीक है। इसे हर वर्ष दो बार मनाया जाता है एक ग्रीष्मकाल चैत्र के महीने में जिसके पश्चात रामनवमी का दिवस आता है और दूसरा शरद ऋतु के आरम्भ होने से पहिले जिसके पश्चात विजयदशमी दशहरे का त्यौहार मनाते हैं जिसमें रावण के दुर्व्यवहार का अन्त हुआ था।

नवरात्रि का शुभपर्व मनाने से मन में ऊर्जा और जीवनी | शक्ति की प्राप्ति होती है। जैसा कि आपने माता की चौकी में उपस्थित होकर अवश्य अनुभव किया होगा। जब सब सामूहिक रूप से देवी की प्रार्थना करते हैं और मिलजुल कर उसका गुणगान करते हैं तो वह अपने भक्तों पर प्रसन्न होकर अपनी कृपा का कवच हमें पहिना देती है। जैसे युद्ध में एक सैनिक कवच पहिन कर अपने को सुरक्षित समझता है वैसे ही दुर्गा मां का कवच पहन भक्त का मन शान्त और धीर हो जाता है।

नवरात्रि की पूजा में भक्त देवी मां से यही प्रार्थना करता है कि इन संसारिक विषयों में हमारी आसक्ति न हो हमारे हृदय में अशान्ति की भावनाएं न हों हमारे जीवन में नवत्व रहे। सरल शब्दों में कहा जाये तो हर प्राणी जैसे कोई भी नई वस्तु पाकर क्षण भर के लिये प्रसन्न होता है। रमणीयता स्वाभाविक रूप से हर नई वस्तु में होती है।

नवरात्रि

‘क्षणौ क्षणौ वा नवताभुपैति तदैव रुप रमणीयता’

हमारे जीवन में नवशक्ति का संचालन बना रहे कर्म करते हुए अपने जीवन की बागडोर उस देवी मां को समर्पण कर दें।

नवरात्रि में नौ दिन क्यों मनाये जाते हैं? यह नौ दिन विशेष रूप से आत्मनिरीक्षण के लिये है। हम अपने मन के अन्दर झांक कर देखें तो यह चंचल मन कभी कामना के आसन पर बैठता है तो कभी क्रोध के कभी ईर्ष्या द्वेष की गद्दी पर विराजमान हो जाता है यही कारण है कि इन वृत्तियों में लगे रहने से कभी मन उदास है। विषाद अवसाद में हम व्यर्थ ही लगे रहते हैं इसलिए यह नौ दिन आत्मनिरीक्षण करके मन को स्थिर और शान्त रखें।

क्षमा वीरों का आभूषण

नवरात्रि संयम का पर्व हैं। इन दिनों हम उपवास या व्रत रखते हैं। उपवास रखने से न केवल भोजन, खान पान पर नियंत्रण होता है हमारी मानसिक स्थिति, बुद्धि, वाणी में भी संयम आ जाता है।

इस अवसर पर घट की स्थापना भी की जाती है जो इस विषय पर संकेत करता है कि हम सब प्राणी एक घट पर बैठे हुए हैं। जैसे एक कुम्हार माटी के घड़े को बनाता है उसी तरह ईश्वर ने हमें यह जीवन दान दिया है। नवरात्रि में घट स्थापना का यह संदेश है कि जैसे यह कलश नौ दिन के बाद माटी में मिल जाता है वैसे ही इस शरीर का अन्त है चाहे इन्सान कितना ही सम्पन्न सर्वगुण धन से परिपूर्ण हो, न जाने यह घट | कब बिखर जाये। देवी मां आत्मा को परमात्मा से प्रति जुड़ने का चिन्तन करवाती है।

दुर्गामाता का वाहन संचारी सिंह है सिंहत्व मानव में बल का प्रतीक है इसलिये कहते हैं कि देवी के भक्तों में शेर जैसे गुण आ जाते हैं और मां के उपासक शक्तिशाली होकर अपने अन्दर के शत्रुओं काम क्रोध वासना आदि का दमन करने में समर्थ हो जाता है। इस पर्व पर कन्याओं के पांव धोकर उन्हें पूजने की प्रथा से नारी जाति को चाहे वह मां, बहिन पुत्री का रूप हो यथावत सम्मान देने की ओर संकेत करती है।

विश्वास

जब हम देवी मां के आगे अखण्ड ज्योति जलाते हैं तो हममें आत्म विश्वास और श्रद्धा की लौ प्रज्जवलित होती है। मैं मानती हूं कि सभी धर्मों का आधार अपने मन की श्रद्धा पर टिका हुआ है। में जब भक्त देवी मां का सच्चे हृदय से गुणगान करता है तो उसका मन संघर्ष और समस्याओं से दूर मन को शान्त और संतुलित कर देता है और वह कह उठता है: –

सुन मेरी देवी पर्वतवासिनी कोई तेरा पार न पाया।

ऊंचे पर्वत बने शिवाले नीचे महल बनाया ||

मां अपनी करुणा से, दया से, वात्सल्य से हमें शक्ति प्रदान करो और मेरी यही प्रार्थना है, ध्यान मगन हो हम सब मैय्या तेरे ही गुण गाये और सर्वजन मनोवांछित फल पाये।

दयालुता

 

satyagyan:

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