जप

जप

सभी धर्मों में विशेष कर हिन्दू धर्म, बौद्ध धर्म में जप को बहुत महत्त्व दिया गया है, जिससे मानसिक शान्ति प्राप्त की जा सकती है। सरल शब्दों में किसी भी शब्द, वाक्य या श्लोक या मन्त्र को बार बार दुहराना जाप कहलाता है। एक ही मूलमन्त्र का उच्चारण की प्रक्रिया ‘जाप’ कहलाता है

‘वृक्ष फले न आपको नदी न भक्षे नीर

जप करने के कारणो भगवन दियो शरीर

जाप करना ईश्वर भक्ति का एक आवश्यक अंग माना गया है :

जब तुझसे न सुलझे तेरे उलझे हुए धन्धे

भगवान् के हाथों में उसे सौंप दे बन्दे

वो खुद ही तेरी मुश्किलें आसान करेगा

जो तू न कर पाया वो भगवान् करेगा

जप
आत्मा परमात्मा दोनों अलग हैं?

धार्मिक जगत् में भिन्न भिन्न ढंग से जप की क्रिया का उपयोग किया जाता है उसे शान्त स्वभाव, योगी और धर्मपालन वाला माना जाता है। यदि कोई पण्डित यजमान के स्थान ग्रहण कर किसी मन्त्र का जाप करते हैं तो वह कल्याण हेतू माना जाता है। कई गुरुधारण करने वाले शिष्यों के कान में मूलमन्त्र देकर कल्याण के लिए उन्हें जाप करने का आदेश देते हैं।

तांत्रिक में विश्वास रखने वाले जीवन में अनिष्ट को टालने के लिए 100, 1000, 2100 या दस हजार तक एक ही मन्त्र को पढ़ने के लिये भ्रमित करते हैं। कोइ भी व्यक्ति यदि अपने व्यक्तिगत झंझटों में संलग्न है तो समय अभाव की ठोर पकड़कर पंडितों या ब्राह्मणों से जाप कराने में आस्था रख लेते हैं।

अंधविश्वास के कारण ऐसे वातावरण में अपने पापों से छुटकारा पाने के प्रलोभन में मानव को ऐसे ढंग आकर्षित लगते हैं।

किन्तु हमारे ऋषि मुनि और ज्ञानी जन, जप का यथार्थ और वास्तविक रुप बतलाते हैं कि कोई भी व्यक्ति नित्य शुभ कर्म करते समय अपनी आस्था के अनुसार किसी भी मन्त्र का जप अर्थज्ञान से करता है वह जप सबसे उत्तम हैं। “ईश्वर के विभिन्न विभिन्न नामों का अर्थ जानकर उसके गुण, कर्म, स्वभाव के अनुसार कर्मशील होकर परमात्मा का नाम स्मरण किसी भी रूप में हो वह जप है ।

सात्विक मन से मन्त्र उच्चारण और विचार पूर्वक ईश्वर का स्मरण करना उसकी स्तुति प्रार्थना करना ही जप का वास्तविक स्वरूप है। अपनी आत्मा के अन्दर शान्त प्रवृत्ति से अपनी चारों दिशाओं में यह सोचना है कि ईश्वर सर्वत्र कण-कण में उसकी सत्ता विद्यमान है। मैं उसके निकट ओर वह मेरे निकट है। जब व्यक्ति को ऐसा अनुभव होने लगे।

जो अपनी हस्ती मिटा चुके हैं। खुदा को खुद ही में पा चुके हैं ।।

अपने मन में ऐसे विचार लाने की चेष्टा करे कि भगवान दयालु हैं सर्वशक्तिमान हैं, न्यायकारी है, वह अन्याय नहीं करता, वह अपने भक्तों पर कृपादृष्टि रखता है इसलिये हम भी अधर्म का मार्ग न अपनायें। हम भी अन्य प्राणियों के प्रति सद्भावना रखें। सर्वशक्तिमान् ईश्वर सामर्थ्य से इस संसार की उत्पति और स्थिति नियम से रखता है उसी से प्रेरणा लेकर अपने जीवन को नियमित कर समर्थ बनायें।

क्षमा वीरों का आभूषण

मनुस्मृति का यह वचन ‘मनः सत्येन शुध्यति‘ तभी सार्थक हो सकता है जब सत्य से मन को पवित्र कर जप करें। सत्य को मन तक पहुंचाने का मार्ग स्वार्थी न हो अन्तर्मुखी होना है। अपने हृदय के भीतर झांकना है क्योंकि यह मन ही तो है

मोरा मन दर्पण कहलाये

भले बुरे सारे कर्मों को देखे और दिखाये

ऐसा अनुभव करते हुए अपने मूलमन्त्र का मनन करना, चिन्तन करना, बुद्धि पूर्वक शान्त मन से करना ही जप का वास्तविक स्वरूप है। किसी कवि ने कितना सुन्दर लिखा है:- 

यह चंचल मन गलियों में घूमना बंद कर देगा

जब यह तुम्हें तलाश कर लेगा

ऐ भगवान्, मेरे मन में दर्शन दो

और बांध कर जप से इसे वश कर लो।

अंत में दर्शकों का शुभ चिन्तन करते हुए मैं बस इतना ही कहूंगा की ईश्वर का मुख्य अवं निज नाम ॐ का जप सर्वोत्तम है क्योंकि इसमें ईश्वर के सभी नाम अकार, उकार, और मकार में स्वतः ही सभी नाम आ जाते हैं और ऋषियों ने भी इसी नाम का उच्चारण कर मोक्ष का मार्ग अपनाया। अतः

जाप न किया तूने ओम नाम का

सर्वशक्तिमान प्रभु सुख धाम का 

विश्वास
satyagyan:

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