क्षमा
‘क्षमा बड़न को चाहिए, छोटन को उत्पात। रहिमन हरि का घटयो, जो भृगुमारी लात’
क्षमा वीरों का आभूषण है इसलिए क्षमा करने वाला मनुष्य ही श्रेष्ठ माना जाता है। उत्पात करने वाले, दूसरों से दुर्व्यवहार करने वाले तो छोटे ही रहेंगे। भगवान् विष्णु का बडप्पन भृगु के प्रहार करने पर किसी तरह कम तो नहीं हुआ। क्षमा न करके आप किसी के प्रति अनुग्रह (एहसान) नहीं कर रहे किन्तु स्वयं को ही चिन्तामुक्त कर रहे हैं।
क्षमा धर्म का एक प्रमुख अंग और लक्षण है। इसके महत्त्व पर हर धर्म में प्रकाश डाला गया है। कहने को तो दो शब्दों का छोटा सा शब्द है किन्तु इसका मन पर बहुत अधिक प्रभाव होता है-
जहां दया वहां धर्म है,
जहां क्षमा तहां आप ।
क्रोध वहां काल है,
जहां लोभ तहां पाप ।।
क्षमा करने का अर्थ है कि आप किसी के प्रति अपनी बुरी भावनाओं को अपने विचारों में परिवर्तन लाकर स्वयं के बारे में न | सोचना । अपने को दूसरों की परिस्थिति में रखने का प्रयत्न करना । अपने मन से आपको यदि किसी के प्रति क्रोध, शिकायत, ईर्ष्या, द्वेष की भावनायें होती है तो आप विश्वास मानिये कि क्षमा करने के पश्चात् यह पीड़ा पहुंचाने वाले का भाव शान्त हो जाता है। क्रोध और द्वेष के बदले आपके मन में शान्ति प्रेम और सहानुभूति की भावनाएं जन्म लेती हैं।
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इसी प्रसंग में एक रोचक कहानी है कि सम्राट अकबर के दरबार में बुद्धिमान बीरबल नाम के ब्राह्मण थे जिनसे अकबर को अधिक प्रेम था। दरबार में सम्राट अकबर का नाई बीरबल को देख जलता कुड़ता रहता और उसने कई बार बीरबल के विरुद्ध शिकायतें भी कीं। किन्तु असफल रहा।
एक दिन उसने महाराजा अकबर से कहा कि आप हर तरह से सफल हैं, किन्तु आपको अपने पूर्वजों का भी पता लगाना चाहिये कि किसी कारणवश वह ऊपर के लोक में सुखी हैं या दुःखी । नाई ने इस काम को ठीक ढंग से करने के लिये ‘बीरबल के नाम का’ सुझाव भी दिया कि ‘उसकी चित्ता बनाकर उसे ऊपर भेज दें,’ वह आपके पूर्वजों के पास पहुंच जायेगा।
कुशाग्र बुद्धि वाले बीरबल ने नाई का प्रस्ताव स्वीकार किया और चित्ता पर बैठते ही एक सुरंग से अपने घर तक पहुंच गये। समय बीतता गया। सब ईर्ष्या करने वालों ने समझा कि बीरबल तो जल गया और सोचा कि उनके रास्ते का कांटा सदैव के लिये दूर हो गया। एक दिन बीरबल लम्बी दाढ़ी और बड़े – बड़े बालों में अपना भयानक शक्त लेकर दरबार में आ पहुंचे और मुस्कराते हुए अकबर से कहा कि वहां सब प्रसन्न और कुशल हैं।
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बस वहां कोई नाई नहीं है इसलिये आपके पूर्वजों के, और मेरे बाल भी इतने बढ़ गये हैं इसलिये आप अपने शाही नाई को ऊपर भेजने का प्रबन्ध करें। तब नाई बीरबल की विद्वता को समझ गया तथा क्षमा याचना करने लगा और बीरबल ने हंसते हुए क्षमा कर दिया।
भला करने वाले भलाई किये जा |
बुराई के बदले भी दुआएं दिये जा ।।
हमारे सम्बन्ध चाहे व्यक्तिगत हों या पारिवारिक, सामाजिक हों या व्यापारिक बिगड़े हुए कोई भी सम्बन्ध क्षमा करने से सुधारे जा सकते हैं। जिस किसी व्यक्ति में दूसरों की त्रुटियों को क्षमा करने का साहस आ सकता है वह तनाव मुक्त हो जाता है।
मन में प्रश्न उठता है कि क्या हमसे कभी कोई गलती नहीं हुई, क्या हमारे मन में कभी क्रोध या रोष द्वेष नहीं आया, क्या क्षमा देना ही महत्त्वपूर्ण है? किसी से क्षमा मांगना भी उतना ही महत्त्व रखता है। क्षमा मांगने का अर्थ है कि अपने भीतर के अहंकार (अहम् ‘मैं’) को निकालना। अहंकारी व्यक्ति न तो क्षमा मांग सकता है न तो क्षमा कर सकता है ‘क्षमा वीरस्य भूषणम्’ क्षमा वीरों का आभूषण है वह आपके मन की शक्ति से है, सकरात्मक दृष्टिकोण से है।
आत्मज्ञान प्राप्त करके इन्सान अहंकार, हिंसक बदला लेने की भावनाओं से मुक्त हो जाता है। भगवान् बाहुबली | महावीर कहलाये क्योंकि उन्होंने क्षमा को जीवन में अनिवार्य माना और उनके बताए हुए मार्ग को धर्म कहा गया। सम्राट अशोक इसलिये महान् नहीं हुए कि वह विजेता थे अपितु उन्होंने उस बौद्ध धर्म का पालन किया जिसमें क्षमा की प्रधानता थी। ईसामसीह को सूली पर चढ़ाया गया पर उन्होंने सभी को क्षमा दान दिया इसलिये वे धर्म के अवतार हुए।
संत कबीर ने भी सरल शब्दों में कहा :-
कविरा तेरी झोंपड़ी, गल कटियन के पास।
जो करेंगे सो भरेंगे, तू क्यों भया उदास ।।
क्षमा मांगने वाला तो अपनी गलती को स्वीकार कर अपराध से मुक्त हो जाता है परन्तु क्षमा न देने वाला आन्तरिक पीड़ा से सुलगता रहता है। व्यवहारिक जीवन में भी जो हम शत्रुता का भाव रखते हैं। उसका मुख्य कारण तो यही है कि हम स्वयं को दूसरों की परिस्थिति में रखने का प्रयत्न नहीं करते।
इसलिये अपना आत्मनिरीक्षण करें अपने भीतर इस गुण को विकसित करें :-
बंजर खेत कभी होता हरा नहीं अन्यायी का होता कभी भला नहीं।
धर्मरुपी ‘क्षमा’ गुण से जीवन सुलभ और सुखी दिशा की ओर अग्रसर हो जायेगा। धर्म का मुख्य लक्षण कबीरदास जी ने सरल शब्दों में ही इसे समझा दिया:-
भली भली सब कोई कहै, रही क्षमा ठहराय ।
कह कबीर शीतल भया, गई जो अग्नि बुझाय ॥
मानव में सबसे बड़ा गुण क्षमा है क्योंकि उसी से हमारे मन में स्थिरता आती है शीतल हो जाने पर क्रोधग्नि बुझ कर मन शान्त रहता है। कहने को तो यह दो अक्षरों का छोटा सा शब्द है किन्तु इसका प्रभाव छोटा नहीं होता। किसी को क्षमा करने का अर्थ है अपने मनोभावों में परिवर्तन। जब भी हमें किसी के प्रति शिकायत, क्रोध, द्वेष, ईर्ष्या या विषमता का भाव होता है तो क्षमा करने से वह स्वयं ही समाप्त हो जाता है।
दान की महिमा – THE GLORY OF DONATON
हमारे सम्बन्धों में, चाहे वो व्यक्तिगत हो या पारिवारिक, सामाजिक हो या राजनीतिक, व्यवसायिक हो या आर्थिक सुधार न होने का मुख्य कारण है आपस में क्षमा का अभाव। जिसने क्षमा करना सीख लिया उसका मन पर नियन्त्रण हो जाता है। ऐसा व्यक्ति तनाव से मुक्त जाता है तथा शारीरिक और मानसिक रोगों से भी दूर रहकर स्वस्थ हो जाता है। सभी वैज्ञानिक, डॉक्टर इस बात का समर्थन करते हैं कि यदि व्यक्ति क्षमाशील तनावमुक्त (stress free) होता है, वह उतना ही अधिक स्वस्थ होता है।
स्वभाविक है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने ही पक्ष का समर्थन करता है तो प्रश्न उठता है कि क्या क्षमा देना, क्षमा मांगना महत्त्वपूर्ण है। क्षमा मांगने वाला अपने मिथ्या अहंकार से मुक्त हो जाता है ? जो व्यक्ति जितना अहंकारी होता है, न तो वह किसी से क्षमा याचना कर सकता है और न ही किसी को क्षमा करता है। वस्तुत: यह इतना सरल भी नहीं इसलिये कहा गया है ‘क्षमा वीरस्य भूषणम् ।’
बहादुर लोग ही इस क्षमा नामक आभूषण को धारण कर सकते हैं। यहां बहादुरी, वीरता का अर्थ मन की शक्ति से है। सकारात्मक मानसिक दृष्टिकोण से है। क्षमा एक ऐसा मनोभाव है जो व्यक्ति को आत्म ज्ञान तथा आत्म निरीक्षण का अवसर देता है। क्षमा द्वारा हीव्यक्ति में आध्यात्मिक उत्थान की संभावना प्रारम्भ होती है।
क्षमा कमजोरी का प्रतीक नहीं है। यदि इन्सान यह सोचे कि क्रोध या हिंसा करके, रोकर हम अपने को बलवान् या बुद्धिमान सिद्ध कर सकते हैं तो यह उनका भ्रम है। भगवान् बाहूबली इसलिये महाबीर कहलाये क्योंकि उन्होंने क्षमा को जीवन में अपनाया, ईसा मसीह ने उन लोगों को भी क्षमा कर दिया जिन्होंने उन्हें सूली पर लटकाया और वह ईसामसीह बन गये।
श्रीराम ने माता कैकयी को क्षमा कर दिया। सम्राट अशोक इसलिए महान् नहीं कहलाये कि उन्होंने युद्ध में विजय प्राप्त की। किन्तु महान इसलिए कहलाये क्योंकि बौद्ध धर्म की शरण में चले गये जहां क्षमा की प्रधानता है। क्षमा के अभाव में न तो कोई व्यक्ति वीर है और न ही कोई धर्म पूर्ण है।
क्षमा मांगने वाला अपनी गलती को स्वीकार करके अपराध से मुक्त हो जाता है, क्षमा न करने वाला उसकी पीड़ा से सुलगता रहता है। क्षमादान तो हर स्थिती में संभव है, यदि दूसरा व्यक्ति गलती होने पर क्षमा नहीं मांगे तो भी आप उसे क्षमा कर दें। आप दूसरों के अपराधों, गलतियों का बोझ अपने मन पर क्यों ढोये ।
जो व्यक्ति न क्षमा मांगना जानते हैं और न ही क्षमा करना, वह अपने आप क्रोध अग्नि में जलते रहते हैं और अपने लिये इस धरती पर ही नरक की सृष्टि कर लेते हैं। क्षमाशील व्यक्ति शान्तचित, प्रसन्न और स्वस्थ रहकर इस धरती पर ही स्वर्ग तुल्य सृष्टि करके आनन्द से जीते हैं।
क्षमा बड़न को चाहिये, छोटन को उत्पात। कहा विष्णु की घटि गई, जो भृगु मारी लात ।। चाहे भृगुमुनि ने श्री विष्णु भगवान् की छाती पर पैर मारा, किन्तु क्या उनमें कोई अभाव आया। उसको क्षमा करने पर संसार में वह प्रशंसा के पात्र हुए। इसलिये क्षमाशील हों, हम यही व्यक्तित्त्व बनायें।
मन वाणी और क्षमा से करे शुद्ध सरल व्यवहार ।
प्राणों से बढ़ कर करे सत्य धर्म से प्यार ||
स्वाध्याय
TIME IS MORE PRECIOUS THAN MONEY
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