कृतज्ञता

कृतज्ञता

कृतज्ञता

कृतज्ञ होना अथवा कृतज्ञता होना, धन्यवाद कहना कि विश्व के हर धर्म की संस्कृति ने इसे अपनाया है और इसे एक सद्गुण माना है। मुझे अब भी याद आता है कि जब मैं Preschool में था तो हमें यह Poem रोज Recite करवाई जाती थी :

Hearts like door will open with ease

With two very very little keys

Don’t forget that two of these

are I thank you and if you please.

कृतज्ञता, हमारी भारतीय संस्कृति में एक महत्त्वपूर्ण और प्रमुख अंग है। धन्यवाद देना एक ऐसी शक्तिशाली क्रिया है जिसे देने वाला महान् लाभ प्राप्त करता है किन्तु उसे पाने वाला भी और शुभ कार्य, और परोपकार आदि करने के लिये भी प्रोत्साहित होता है।

प्रत्येक इन्सान की यह मनोवृत्ति है कि जब उसके छोटे छोटे कार्यों को सराहना मिलती है तो वह और भी अधिक मन लगाकर काम करना चाहता है। धन्यवाद देना यदि उजाला है तो, शिकायत करना यदि अंधेरा है तो। धन्यवाद का भाव यदि हृदय के बंद द्वारों को खोलता है तो शिकायतों और उलाहनों का ख्याल, खुले द्वार को जोर से बंद करता है।

प्रेम की परिभाषा

गिले शिकवो की लौ से कृतज्ञता का पौधा झुलस सा जाता है। धन्यवाद देना केवल उपरी दिखावा या Lip service नहीं किन्तु उसके हर पहलू को हमें समझना होगा।

कृतज्ञता

पहला स्तर है जीवन में निर्वाह का। यदि हम गम्भीरता से अपने निजी जीवन पर दृष्टि डालें तो ऐसे बहुत से लोग और वस्तुएं हैं जिनके हमारे ऊपर बहुत से उपकार हैं यही कारण है कि प्राचीन काल में मुनिजन और मनुष्य धरती, जल, अग्नि को यज्ञादि करके प्रकृति पर अपना आभार प्रकट करते थे। जिनके कारण यह रोटी, कपड़ा और मकान मिले हैं उन पर धन्यवाद की बौछार क्यों न करें ?

दूसरे स्तर पर हमारे जीवन निर्माण में जो भी सहयोगी हैं वह भी हमारे से धन्यवाद लेने के पात्र हैं। इसमें हमारे माता पिता जो न केवल हमें जन्म देते हैं किन्तु हमारा पालन पोषण और शुभ संस्कार देकर हमें शिक्षित करते हैं। उसके पश्चात् गुरुजन, परिवार सम्बन्धी और मित्रगण हैं जिनका हमारे जीवन के निर्माण में बहुत उपकार है।

जप

तीसरे स्तर पर हमारा मानसिक और आन्तरिक ज्ञान है जो कि हमें अपने कर्त्तव्यों और लक्ष्य की ओर प्रेरित करता है। हर क्षण उस प्रभु का धन्यवाद करें जिसने हमें यह जीवनदान दे कर आत्म उत्थान के लिये प्रेरणा दी है। हम उस ईश्वर के ऋण से कभी मुक्त नहीं हो सकते इसलिये जीवन में धर्मपालन और भक्ति से ईश्वर को पुकार कर कृतज्ञता दिखायें

‘भगवान् तेरे सिवाये मेरा कोई नहीं है।

आधार तू ही तू है बस दूसरा नहीं है’

यदि इन्सान कृतज्ञ होकर अपने उपकार करने वालों को धन्यवाद देता है तो उसके गुणों में वृद्धि होती है और जीवन में आनन्द का विकास होता है। जब हम इस संसार सागर की विशालता न समझकर केवल समुद्र के खारेपन को ही देखते रहे तो उसमें आप किसे दोषी मानेंगे।

गुलाब की सुन्दरता और सुगन्ध की उपेक्षा कर यदि हम यही देखें कि वह तो कांटो से घिरा है। नदी की निर्मलता और मिठास को भूलकर यही देखें कि तेरे किनारों पर कीचड़ जमी है।

पूनम के चांद की शीतलता और पवित्रता देखकर कहें कि तेरे में कलंक काला दाग भी है। सच्चाई तो यह है कि दूसरों में अच्छाई देखते हुए भी शिकायतें करें तो मन फरियादो से ऊपर नहीं उठ सकता। क्यों न सभी परिजनों के प्रति कृतज्ञ हो धन्यवाद करना सीख लें।

न तो केवल उनके प्रति कृतज्ञ हों जिन्होंने हमें सहयोग दिया है, हम पर उपकार किये हैं, किन्तु तन, मन, धन से हर क्षण इस भावना से ओत प्रोत रहें तो ऐसा व्यक्ति हमेशा शान्त और प्रसन्नचित्त रह सकता है। सभी दर्शकों को हितचिन्तन करते हुए मेरा आभार, नमस्ते और बहुत बहुत धन्यवाद ।

Time is more precious than money
satyagyan:

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