विनम्र बनो
आज हम बात करने वाले हैं विनम्रता के बारे में तभी तो वेदों में कहा गया है विनम्र बनो। दोस्तों वेदों में एक छोटी सी सूक्ति जाती है पर्णालधीयसी भव। जिसका मतलब होता है – हे मानव तू पर्ण यानी पत्ते से भी हल्का बन, अर्थात् विनम्र बन। जो नम्र बनता है उसके पास सद्गुण, सम्पत्ति, धन-दौलत मान-सम्मान सभी चीजें अपने आप स्वयं खिंची चली आती हैं। – विष्णु पुराण में कहा है: –
सुशीलो भव धर्मात्मा मैत्रः प्राणिहिते रतः ।
निम्न यथापः प्रवणाः पात्रमायन्ति सम्पदः ॥
हे मनुष्य तू सुशील, पुण्यात्मा, प्रेमी और सभी प्राणियों का हित करने वाला बन क्योंकि जैसे नीचे भूमि की ओर लुढ़कता हुआ जल अपने-आप ही पात्र यानी बरतन में आ जाता है वैसे ही विनम्र मनुष्य के पास समस्त सम्पत्तियाँ स्वयं ही आ जाती हैं। बहुत से लोग थोड़ी सी विद्या पाकर अभिमान, घमंड और अहंकार में मर जाते हैं।
विद्या प्राप्त करके बहुत लोग ऐंठने लगते हैं, उनमें अकड़ आ जाती है, रावण को भी अपने विद्या पर अहंकार था उसे चारों वेद, छह शास्त्र जैसे सभी विधाऐं कंठस्थ थीं, उसे याद थीं, इसीलिए तो रावण को दशमुख भी कहा जाता है और इसी घमंड को भगवान राम जी ने तोड़ा था। विद्या से अभिमान नहीं, नम्रता आनी चाहिए।
विद्या ददाति विनयं विनयाद्याति पात्रताम् ।
पात्रत्वाद धनमाप्नोति, धनाद् धर्मस्तत: सुखम् ॥
विद्या से विनम्रता आती है, विनम्रता से पात्रता यानी योग्यता प्राप्त होती है, योग्यता से धन मिलता है, धन से धर्म और सुख की प्राप्ति होती है। जब आपके मन में अभिमान की भावनाएं आने लगे तो महर्षि दयानन्द, महात्मा गाँधी, न्यूटन, भगवान बुद्ध, श्री कृष्ण जी और भगवान राम को याद कर लेना ।
एक बार एक व्यक्ति महर्षि दयानन्द जी के पास आया और कहने लगा कि स्वामी जी आप तो इतने बड़े एक कवि हैं तब स्वामी जी ने उत्तर दिया! यदि मैं गौतम, कपिल, कणाद, पतंजलि “इन सभी ऋषियों के समय में हुआ होता तो मेरी गिनती साधारण विद्वानों में भी कठिनता से होती अब आप ही सोच लो वेद के इतने बड़े अद्भुत विद्वान होकर भी उनमें विनम्रता कितनी भरी हुई थी।
न्यूटन का नाम भी आपने जरूर सुना होगा’ जिन्होंने गुरुत्वाकर्षण (The law of Gravity) जैसे सिद्धान्तों का आविष्कार किया था। न्यूटन की बुद्धि और विद्या पर सभी इंग्लैंड वालों को गर्व था। लेकिन स्वयं न्यूटन को अपनी विद्या और बुद्धि पर न तो कोई गर्व था और न ही किसी प्रकार का कोई अहंकार।
सौ साल जीने की कला
एक दिन एक औरत न्यूटन से मिली और उनकी विद्या और बुद्धि की तारीफ और प्रशंसा करने लगी। अपनी प्रशंसा सुनकर न्यूटन खुश होने की बजाए बड़े ही विनम्रता से बोले –
Alas i am only like a child picking up pebbles on the shore of the giant ocean of truth. मैं तो उस बच्चे के समान हूँ जो सत्य के विशाल समुद्र के किनारे बैठा हुआ केवल कंकड़ों को ही चुनता रहा है।
एक बार महात्मा गाँधी जी एक स्थान पर लैक्चर यानी भाषण देने गए। भाषण देने के समय वे अपने साधारण और सादा वेश के कपड़े पहने हुए थे, जिसके कारण लोगों ने उन्हें सब्जी काटने और पानी लाने की आज्ञा दी। गाँधी जी ने इन कार्यों को नम्रतापूर्वक प्रसन्न होकर किया।
एक बार ईश्वरचन्द्र विद्यासागर एक युवक के कहने पर उसके ट्रंक को उठाकर चल दिए। इसी प्रकार यदि हम अन्य महापुरुषों के जीवन को देखें तो पता लगेगा कि महापुरुष बड़े विनम्र होते हैं। इसीलिए वे महापुरुष होते हैं। देखो समुद्र में अनेक नदियाँ आकर मिलती हैं, परन्तु फिर भी समुद्र शान्त रहता है, उसमें बाढ नहीं आती। विद्या, धन, वैभव, उच्च पदवी, मान और सम्मान पाकर फूल मत जाओ, अपनी मर्यादा से बाहर मत जाओ।
जो नम्र है उसे न किसी से भय होता है, और न ही कोई दुख और पतन कि चिन्ता । जो नम्र होता है उसका हर जगह आदर और सम्मान होता है।
सवतें लघुताई भली, लघुता से सब होय
जस द्वितीया को चन्द्रमा, सीस नवै सब कोय ॥
जो अभिमानी होता है उसका हर जगह तिरस्कार होता है, उसे हर जगह दुख ही झेलना पड़ता है। किसी ने फुटबॉल से पूछा कि क्या कारण है कि तुम जिसके भी पैरों में जाते हो हर कोई तुम्हें लात ही मारता है, ठोकर ही मारता है, तब फुटबॉल ने कहा कि मेरे पेट में अभिमान नाम की हवा भरी हुई है। इसीलिए लोग मुझे लात मारते हैं, न चाहते हुए भी मैं उनकी ठोकरों को सहता हूँ।
यदि आप चाहते हैं कि लोग आपका आदर-सम्मान करें तो पहले विनम्र बनो। नम्रता मानव-जीवन का आभूषण है। नम्रता से मनुष्य के गुण सुशोभित होते हैं। नम्रता विद्वान की विद्वता को, धनवान के धन को बलवान के बल को और सुरूप यानी सुन्दर रूप को चार चाँद लगा देती है। सच्चा बड़प्पन और सभ्यता भी नम्रता में ही है।
ये दुनिया, ये संसार कई बार विनम्रता को झुकना समझ लेती है। आपने ये भी कई बार लोगों को कहते हुए सुना होगा कि मैं कभी किसी के सामने झुकता नहीं “। ये सारी बातें उन इंसानों के मन में अहंकार पैदा कर देती हैं जो खुद उन्हें उनके दुख और पतन की ओर ले जाती हैं। एक बात आप यह समझ जाइए कि आपके झुकने का मतलब यह नहीं कि सामने वाला इंसान आपसे अधिक प्रभावशाली बन गया या फिर है।
मूर्तिपूजा अहम् प्रश्नोत्तरी
यह भी नहीं कि आप हार चुके हो या फिर हार मान रहे हो। इसका मतलब होता है आप उसे इज्जत दे रहे हो, उसकी Respect कर रहे हो। उसको सम्मान दे रहे हो । आप वृक्ष यानी पेड़ पौधों से ही सीख लो उनमें कितनी विनम्रता होती है। जब भी उन पेड़ पौधों में फल और फूल आते हैं तो उन्हें गर्व महसूस होता है लेकिन फल और फूल आने पर भी- उन्हें न ही अहंकार और घमंड होता है बल्कि वे विनम्रता से और भी नीचे झुक जाते हैं।
विनम्र होना, humble होना, polite होना, मनुष्य होने का एक प्राथमिक गुण है। कुछ लोग विनम्र व्यक्ति को कायर और डरा हुआ मानने लगते हैं जबकि विनम्रता के लिए अक्रोध याने की बिना गुस्से वाला होना जादा जरूरी है। जो क्रोधी होगा, जादा गुस्सा करने वाला होगा, वह कभी भी विनम्र नहीं हो सकता। जो विनम्र व्यक्ति होता है वह सैकड़ों दुर्गुणों पर एक साथ जीत हासिल कर लेता है इसीलिए अपने जीवन को सही दिशा में ले जाना है तो पहले आपको विनम्र बनना होगा।
रवीन्द्र नाथ टैगोर जी ने कहा है:-
विनम्रता एक आध्यात्मिक शक्ति है जो सात्विकता से ही प्रकाशित होती है।
एक बार एक गाँव में बहुत तेज आँधी आने लगी, आँधी इतनी तेज थी कि उसे जो भी मिला उसे उड़ाते हुए लेकर चली जा रही थी। यह सारा नजारा उस गाँव में स्थित पेड़ पौधे देख रहे थे। उसमें से एक बरगद का पेड़ घमंड में चूर होकर सभी पेड़ पौधों को कहने लगा’ कि मैं तो यहाँ पिछले सौ सालों से खड़ा हूँ, मैं बहुत जादा मजबूत और ताकतवर भी हूँ,
ये आंधी मेरा कुछ भी नहीं बिगाड़े पाएगी, इसके जैसे कई आँधीयों को मैंने अपनी ताकत से रोका है। यह कहकर वह घमंडी पेड़ उस आँधी से लड़ने के लिए तैयार हो गया। इस बरगद के पेड़ को देखकर बाकी पेड़ भी धमंड और अहंकार में आ गए और सभी पेड़ उस आँधी से लड़ने के लिए तैयार हो गए।
इन सभी दृश्यों को पास में ही स्थित चावल की फसलें देख रही थीं। इन्होंने सभी पेड़ों को प्यार से समझाया कि इस समय इस आँधी से लड़ना बहुत जादा खतरनाक है, इस समय घमंड करना बिल्कुल ठीक नहीं। इस समय विनम्रता और संयम रखने से ही बचा जा सकता है।
लाख कोशिशों के बाद भी वो पेड़ नहीं माने और अंत में जब आँधी आई तो सभी पेड़ों को अपने साथ जड़ से उखाड़कर ले गई और जब आँधी आ रही थी तब सभी पौधे विनम्रता से नीचे झुक गए और आँधी उनके ऊपर से चली गई और उन्हें कोई नुकसान भी नहीं हुआ।
रामायण में जब एक बार भगवान राम और रावण के सबसे बड़े पुत्र मेघनाथ में युद्ध हो रहा था तो मेघनाथ ने राम जी के ऊपर ब्रह्मास्त्र छोड़ दिया। भगवान राम चाहते तो उस ब्रह्मास्त्र को रोक सकते थे। उस ब्रह्मास्त्र पर वार भी कर सकते थे, उसकी दिशा भी बदल सकते थे, पर उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं किया। वे ब्रह्मास्त्र के सामने हाथ जोड़कर विनम्र भाव से खड़े हो गए।
उन्होंने उस बुझास्त्र का भी बड़ी विनम्रता से सम्मान किया। भगवान श्री कृष्ण सोलह कलाओं में निपुण थे फिर भी उन्होंने राजसूय यज्ञ के दौरान ऋषि-मुनियों के पैर धोने का काम लिया। और इस काम को भी उन्होंने बहुत ही विनम्रता से किया। यह है सच्ची विनम्रता । आप कितने भी बड़े क्यों न बन जाओ लेकिन विनम्रता की भावना आपनें जरूर होनी चाहिए।
दया